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World's Most Polluted City: दिल्ली में प्रदूषण की असली वजह क्‍या? किसी को नहीं पता!

दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर दिल्‍ली इतना अधिक प्रदूषित क्‍यों है, इसका वास्‍तविक कारण किसी को पता नहीं है।

Dharmender Chaudhary
Updated : December 25, 2015 9:24 IST
World’s Most Polluted City: दिल्ली में प्रदूषण की असली वजह क्‍या? किसी को नहीं पता!
World’s Most Polluted City: दिल्ली में प्रदूषण की असली वजह क्‍या? किसी को नहीं पता!

नई दिल्ली। दिल्ली में प्रदूषण रोकन के लिए राज्य सरकार 1 जनवरी से ऑड-ईवन फॉर्मूला लागू करने जा रही है। गुरुवार को मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसका ब्लूप्रिंट भी पेश कर दिया है। ये पूरी कवायद दिल्ली में प्रदूषण को रोकने के लिए की जा रही है। लेकिन, दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर इतना प्रदूषित क्‍यों है, इसका वास्‍तविक कारण किसी को पता नहीं है। हम यह बात इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि देश के सबसे बड़े संस्थान और सरकारी रिपोर्ट पर नजर डालेंगे तो दिल्ली को प्रदूषित होने की वजह अलग-अलग बताई जा रही हैं। ऐसे में बड़ा सावल यह है कि दिल्ली की हवा को दूषित करने के लिए आखिर असली जिम्‍मेदार गाड़ियां हैं?

जुलाई में जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के लिए सरकार को फटकार लगाई, उस वक्‍त केंद्र सरकार ने जवाब दिया था कि उसे प्रदूषण बढ़ने की मुख्य वजह का पता नहीं है। जबकि, उससे कुछ महीने पहले ही सरकार ने पुराने डीजल वाहनों पर रोक न लगाने में मदद के लिए एक एफिडेविट दायर कर कहा था कि दिल्ली में प्रदूषण की मुख्य वजह गाड़ियां नहीं हैं।

प्रदूषण का जिम्मेदार कौन? कार या इंडस्ट्री

आम आदमी पार्टी की सरकार अल्ट्रा-फाइन पार्टिकुलेट मैटर या पीएम 2.5 एमिशन को कम करने के लिए ऑड-ईवन का फॉर्मूला लागू कर रही है। इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) कानपुर ने दो साल पहले एक रिपोर्ट जारी कर कहा था कि पीएम 2.5 का लेवल ज्यादा होने से उच्च स्तर पर एम्फीसेमा और कैंसर जैसी बिमारी हो सकती है। उसी समय रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि कार, जीप और ट्रक 10 फीसदी से कम अल्ट्रा-फाइन प्रदूषण फैलाते हैं। दूसरी ओर, रिपोर्ट में कहा गया था कि बड़ा प्रदूषक सड़कों पर उड़ने वाली धूल है। रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषण फैलाने में धूल की हिस्सेदारी 35 फीसदी तक है, जबकि घरेलू रसोई, पावर प्लांट और इंडस्ट्रियल उज्‍सर्जन से 25 से 35 फीसदी तक प्रदूषण फैलता है।

 जितनी रिपोर्ट, उतनी बातें

आईआईटी दिल्ली ने पिछले साल निष्कर्ष निकाला कि दिल्ली को गाड़ियां सबसे ज्यादा प्रदूषित करती हैं। इसके बाद इंडस्ट्री, पावर प्लांट और घरेलू स्रोत प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। वहीं, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा किए गए एक अध्ययन (2007-10) के मुताबिक गाड़ियों के उत्‍सजर्न से नाइट्रोजन ऑक्साइड बढ़ता है, जबकि पीएम 2.5 का कारण सड़क पर उड़ने वाली धूल है। इसके विपरीत दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने सीपीसीबी की रिपोर्ट को यह कहकर नकार दिया था कि उनकी कार्यप्रणाली दोषपूर्ण है। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के रिसर्च फेलो भार्गव कृष्णा ने कहा कि चीजे काफी बदल चुकी हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली का चरित्र बदल चुका है और शहर में गाड़ियों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है। इसलिए सीपीसीबी के निष्कर्ष में खामिया हो सकती हैं। दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या के लिए आम तौर पर सीपीसीबी का अध्ययन इस्तेमाल किया जाता है।

राजनीति का खेल हो खत्‍म

विशेषज्ञ कहते हैं कि केंद्र और राज्‍य सरकार की अपनी-अपनी एजेंसियां हैं, जो प्रदूषण को जांचने का काम करती हैं। इन एजेंसियों का इस्‍तेमाल राजनीतिक खेल खेलने में किया जा रहा है और यह संस्‍थाएं एक-दूसरे की रिपोर्ट को ही गलत साबित करती नजर आती हैं। जबकि इसका समाधान यह होना चाहिए कि केंद्र और दिल्‍ली सरकार मिलकर इस समस्‍या से लड़े। इसका सबसे अच्‍छा उदाहरण हांगकांग है, जहां सिस्‍टम काफी सक्षम है क्‍योंकि वहां विभिन्‍न संगठनों के बीच स्‍पष्‍ट पदानुक्रम है। यहां कोई भी एक-दूसरे के काम में दखल नहीं दे सकता और न ही गलत जानकारी दे सकता है। पॉलिसी का निर्माण गंभीर विचार-विमर्श के बाद होता है। भारत को भी एक सेंट्रल अथॉरिटी की जरूरत है, जो स्‍वतंत्र रूप से काम करे और पर्यवरण आंकड़ों को एकत्रित कर उनका आकलन कर सही नीति बनाने में सरकार की मदद करे।

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