नई दिल्ली। सरकार और किसानों के बीच सोमवार को होने वाली 7वें दौर की बातचीत से पहले देश की सबसे मूल्यवान कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries) ने कहा है कि उसकी कॉन्ट्रैक्ट या कॉरपोरेट फार्मिंग के क्षेत्र में उतरने की कोई योजना नहीं है और वह किसानों को सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। कंपनी ने आगे कहा कि उसने कभी भी कॉरपोरेट फार्मिंग या कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए कोई कृषि जमीन नहीं खरीदी है और न ही ऐसा करने की उसकी कोई योजना है।
आरआईएल ने आगे कहा कि वह किसानों से सीधे अनाज की खरीद नहीं करती है और उसके आपूर्तिकर्ता किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर ही उनकी उपज की खरीद करते हैं। कंपनी ने कहा कि उसने कम कीमत पर लंबी अवधि के लिए कोई खरीद अनुबंध नहीं किया है। कंपनी ने बताया कि उसने पंजाब और हरियाणा में मोबाइट टॉवर्स को पहुंचाए जा रहे नुकसान के बारे में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिक दायर की है। आरआईएल ने उच्च न्यायालय से अपने कर्मचारियों और संपत्ति की सुरक्षा के लिए उचित आदेश जारी करने का आग्रह किया है।
पिछले कुछ हफ्तों में किसान प्रदर्शनिकारियों द्वारा पंजाब और हरियाणा में आरआईएल के 1500 से अधिक मोबाइल टॉवर्स को नुकसान पहुंचाया गया है। नवंबर में किसानों के कुछ संगठनों द्वारा पंजाब के रिलायंस फ्रेश के स्टोर को बंद करवाया गया था। मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने कहा है कि नए कृषि कानूनों के साथ उसका नाम जोड़कर प्रतिस्पर्धियों द्वारा कंपनी के व्यापार को नुकसान पहुंचाने और उसकी प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। कंपनी ने यह स्पष्ट किया है कि वह कॉरपोरेट या कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग नहीं करती है और न ही इस उद्देश्य के लिए पंजाब/हरियाणा या देश में कहीं भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई कृषि भूमि खरीदी है।
कंपनी ने कहा कि देश में अभी जिन तीन कृषि कानूनों को लेकर बहस चल रही है, उनके साथ उसका कोई लेना-देना नहीं है। कंपनी ने यह भी कहा कि उसे इन कानूनों से किसी तरह का कोई फायदा नहीं हो रहा है। खाद्यान्न व मसाले, फल, सब्जियां तथा रोजाना इस्तेमाल की अन्य वस्तुओं का अपने स्टोर के जरिये बिक्री करने वाली उसकी खुदरा इकाई किसानों से सीधे तौर पर खाद्यान्नों की खरीद नहीं करती है। कंपनी ने कहा कि किसानों से अनुचित लाभ हासिल करने के लिए हमने कभी लंबी अवधि का खरीद अनुबंध नहीं किया है। हमने न ही कभी ऐसा प्रयास किया है कि हमारे आपूर्तिकर्ता किसानों से पारिश्रामिक मूल्य से कम पर खरीद करें। हम ऐसा कभी करेंगे भी नहीं।
किसानों का मानना है कि नए कृषि कानूनों से खेती और किसानों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि गत बुधवार को छठे दौर की औपचारिक वार्ता के बाद सरकार और प्रदर्शनकारी किसान संगठनों के बीच बिजली शुल्कों में बढ़ोतरी एवं पराली जलाने पर जुर्माने के मुद्दों पर सहमति बनी थी, लेकिन विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी को लेकर गतिरोध बरकरार है। हजारों किसान कड़ाके की ठंड के बावजूद एक महीने से अधिक समय से राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं।