नई दिल्ली। फ्लिपकार्ट, अमेजन, और स्नैपडील जैसी ई-कॉमर्स वेबसाइट पर जल्दी ही डिस्काउंट गायब होने वाला है। अगर आप इन वेबसाइट से भारी डिस्काउंट पर सामान खरीदते हैं तो आने वाले दिनों में निराशा हाथ लग सकती है। सरकार ने ई-रिटेल में 100 फीसदी एफडीआई को मंजूरी दे दी है। साथ ही नियम भी तय किए हैं, जिसके बाद शायद ही कोई ई-कॉमर्स कंपनियां आपको भारी डिस्काउंट दे पाएंगी। सरकारी पॉलिसी में ये कहा गया कि जो भी कंपनी ‘ऑनलाइन मार्केटप्लेस’ चलाएगी, वो “प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सामान की कीमतों पर असर नहीं डाल सकती हैं”.
क्या है नया नियम?
ई-कॉमर्स कंपनियों और रिटेल कंपनियों के बीच अब ग्राहकों के लिए लड़ाई और तेज़ होने वाली है। लेकिन नई पॉलिसी के तहत ऑनलाइन कंपनियां अब ग्राहकों के लिए अपनी जेब से डिस्काउंट नहीं दे पाएंगीं। ई-रिटेल में एफडीआई की मंजूरी के साथ सरकार ने नियम और शर्तें भी लगाई है। इसके तहत ई-कॉमर्स कंपनियां सामान की कीमतों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं कर पाएंगी। इस फैसले को रिटेल कंपनियां जीत की तरह देखा रही हैं। रिटेल कंपनियां ई-कॉमर्स कंपनियों के डिस्काउंट के खिलाफ कई सालों से आवाज उठा रही थीं। नई सरकारी पॉलिसी की घोषणा के बाद अब ई-कॉमर्स कंपनियों को ‘ऑनलाइन मार्केटप्लेस’ की तरह काम करना होगा। कुछ ई-कॉमर्स कंपनियां अपने पास माल की डिलीवरी लेकर ग्राहकों को डिस्काउंट के ज़रिए लुभाकर बिक्री कर रही थीं।
कैशबैक देने वाली वेबसाइटों पर भी नई पॉलिसी की मार
नई पॉलिसी की मार कैशबैक देने वाली वेबसाइटों पर भी पड़ेगी। गोपैसा डॉट कॉम, कैशकरो डॉट कॉम जैसी वेबसाइटों पर अगर आप लॉग-इन करके ऑनलाइन खरीदारी करते हैं तो आपको कैश डिस्काउंट मिलता है जो आपके बैंक के खाते में भेजा जाता है। पॉलिसी में बदलाव के बाद विदेशी कंपनियां अब देश की बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों में पूरी हिस्सेदारी खरीद सकती हैं. फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, पेटीएम, शॉपक्लूज जैसी कंपनियों में जो विदेशी निवेश है, उन पर अब पूरी तरह विदेशी कंपनियों का कब्जा हो सकता है। नए नियमों के बाद एक कंपनी किसी भी ग्राहक या दूसरी कंपनी को 25 फीसदी से ज्यादा सामान नहीं बेच सकेगी।
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