नई दिल्ली। महंगे तेल के पीछे आखिर खेल क्या है, इसे समझने के लिए हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा कही गई कुछ बातों को समझना होगा। उन्होंने पेट्रोल, डीजल के दाम में कमी के लिए उत्पाद शुल्क कटौती की कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई और कहा कि पिछले कुछ वर्षों में इन ईंधनों पर दी गई भारी सब्सिडी के एवज में किए जा रहे भुगतान के कारण उनके समक्ष ज्यादा गुंजाइश नहीं बची है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस और केरोसिन की बिक्री उनकी वास्तविक लागत से काफी कम दाम पर की गई थी। जिसका खामियाजा अब जनता को महंगी कीमत पर ईंधन खरीदकर चुकानी पड़ रही है।
संप्रग सरकार है जिम्मेदार
सीतारमण ने आरोप लगाया है कि सप्रंग सरकार ने इन ईंधनों की सस्ते दाम पर बिक्री के लिए कंपनियों को सीधे सब्सिडी देने के बजाये 1.34 लाख करोड़ रुपये के तेल बॉन्ड जारी किए थे। उस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर निकल गए थे। ये तेल बॉन्ड अब परिपक्व हो रहे हैं। सरकार इन बॉन्ड पर ब्याज का भुगतान भी कर रही है।
पिछली सरकार ने काम किया मुश्किल
सीतारमण ने कहा कि यदि मुझ पर आयल बॉन्ड का बोझ नहीं होता तो मैं ईंधनों पर उत्पाद शुल्क कम करने की स्थिति में होती। पिछली सरकार ने आयल बॉन्ड जारी कर हमारा काम मुश्किल कर दिया। मैं यदि कुछ करना भी चाहूं तो भी नहीं कर सकती क्योंकि मैं काफी कठिनाई से आयल बॉन्ड के लिए भुगतान कर रही हूं।
7 साल में 70 हजार करोड़ रुपये का ब्याज
सीतारमण ने कहा कि पिछले सात सालों के दौरान तेल बॉन्ड पर कुल मिलाकर 70,195.72 करोड़ रुपये के ब्याज का भुगतान किया गया है। उन्होंने कहा कि 1.34 लाख करोड़ रुपये के जारी तेल बॉन्ड पर केवल 3,500 करोड़ रुपये की मूल राशि का ही भुगतान हुआ है और शेष 1.30 लाख करोड़ रुपये का भुगतान इस वित्त वर्ष से लेकर 2025-26 तक किया जाना है। सरकार को चालू वित्त वर्ष 2021-22 में 10,000 करोड़ रुपये, 2023-24 में 31,150 करोड़ रुपये और उससे अगले साल में 52,860.17 करोड़ तथा 2025-26 में 36,913 करोड़ रुपये का भुगतान तेल बॉन्ड को लेकर करना है।
इसलिए बढ़ाया गया उत्पाद शुल्क
सीतारमण ने कहा कि ब्याज भुगतान और मूल राशि को लौटाने में बड़ी राशि जा रही है, यह अनुचित बोझ मेरे ऊपर है। वर्ष 2014-15 में बकाया राशि 1.34 लाख करोड़ रुपये और ब्याज का 10,255 करोड़ रुपये का भुगतान होना था। वर्ष 2015-16 से हर साल का ब्याज भुगतान 9,989 करोड़ रुपये है। सरकार ने पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क को पिछले साल 19.98 रुपये से बढ़ाकर 32.9 रुपये प्रति लीटर कर दिया। महामारी के दौरान जहां एक तरफ मांग काफी कम रह गई वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम गिर गए। ऐसे में सरकार ने उत्पाद शुल्क बढ़ाया।
88 प्रतिशत बढ़ा सरकार का राजस्व
केंद्र सरकार को पेट्रोल और डीजल से कर प्राप्ति 31 मार्च को समाप्त वर्ष में 88 प्रतिशत बढ़कर 3.35 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई, जो कि एक साल पहले 1.78 लाख करोड़ रुपये रही थी। महामारी पूर्व वर्ष 2018-19 में यह 2.13 लाख करोड़ रुपये रही थी। उत्पाद शुल्क वृद्धि से प्राप्त राशि तेल बॉन्ड के लिए किए जाने वाले भुगतान से कहीं ज्यादा है।
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