नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) को कानपुर में पेठा उद्योग के कारण होने वाले प्रदूषण के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने पर फटकार लगाई और इसके अध्यक्ष को बोर्ड के कामकाज की समीक्षा करने का निर्देश दिया। अधिकरण ने कहा कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उसके आदेश के एक साल, नौ महीने बाद एक रिपोर्ट दाखिल की कि निरीक्षण किए गए नौ कारखानों को बंद पाया गया।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति ए के गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘हमें यह आश्चर्यजनक लगता है कि निरीक्षण दल में बहुत कनिष्ठ अधिकारी शामिल थे और दर्ज की गई रिपोर्ट बेहद असंतोषजनक है। इस अधिकरण के आदेश के एक साल से अधिक समय बाद कार्रवाई क्यों शुरू की गई, इसका भी कोई स्पष्टीकरण नहीं है।’’ अधिकरण ने कहा कि अवैध तरीके से भूजल के दोहन और अपशिष्ट के प्रबंधन के खिलाफ कार्रवाई के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया।
पीठ ने कहा कि यह उल्लेख किया गया है कि पानी का उपयोग घरेलू और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा था लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि क्या विशेष रूप से औद्योगिक उद्देश्यों के लिए आवश्यक अनुमति दी गई थी और यदि नहीं, तो उल्लंघन के लिए क्या उपचारात्मक कार्रवाई की गई। एनजीटी ने कहा कि इस तरह की निष्क्रियता राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वैधानिक दायित्व की विफलता है। पीठ ने कहा, ‘‘अधिकरण ने रिपोर्ट देने के लिए दो महीने का समय दिया था लेकिन एक साल से अधिक समय के बाद कार्रवाई शुरू की गई थी। रिपोर्ट राज्य पीसीबी के अकुशल कामकाज के बारे में बताती है। ऐसी विफलताओं के लिए, संबंधित अधिकारियों को जवाबदेह बनाना जरूरी है।’’
पीठ ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्य सचिव को उपरोक्त टिप्पणियों के आलोक में बोर्ड के कामकाज की समीक्षा करने तथा संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के साथ-साथ पर्यावरण मानदंडों के उल्लंघन के लिए कानून को लागू करने सहित उचित उपचारात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया। इसके साथ हर्जाने के आकलन, अभियोजन शुरू करने के साथ-साथ अनुशासनात्मक कार्रवाई के बारे में भी कहा गया। अधिकरण सुशील कुमार अवस्थी की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। अवस्थी ने कानपुर के रिहायशी इलाकों में पेठा फैक्टरी में भूजल के अवैध दोहन से पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ने का आरोप लगाया है।