नई दिल्ली। देश विदेशी से वित्तीय सहायता पाने वाले ऐसे गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) जो एक निर्धारित न्यूनतम सीमा से अधिक का अनुदान प्राप्त करते हैं, उन्हें तथा उनके अधिकारियों को अपनी संपत्ति एवं देनदारी के बारे में इस महीने के अंत तक ब्योरा देने को कहा गया है। केंद्र ने पिछले महीने आदेश जारी किया कि एक करोड़ रुपए से अधिक सरकारी अनुदान तथा विदेशों से 10 लाख रुपए से अधिक चंदा प्राप्त करने वाले संगठनों को लोकपाल के दायरे में लाया जाए। उसी के बाद उक्त आदेश आया है।
कार्मिक मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, सरकार द्वारा पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से वित्त पोषित तथा सालाना एक करोड़ रुपए से अधिक की आय वाली सभी सोसाइटी, एसोसिएशन या न्यास (चाहे वह किसी प्रभावी कानून के तहत पंजीकृत हों या नहीं) उनके निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी को संपत्ति और देनदारी का ब्योरा देना है। उसने कहा कि ये ब्योरा संबद्ध केंद्र सरकार के उस विभाग को देना है जिसने गैर-सरकारी संगठन को सर्वाधिक राशि दी।
अधिकारी ने कहा कि अगर गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) को 10 लाख रुपए से अधिक का विदेशी अनुदान मिलता है तो उसे गृह मंत्रालय के पास रिटर्न जमा करना होगा। उसने कहा, केंद्र द्वारा यह निर्णय किया गया है कि एनजीओ के पदाधिकारियों को लोक सेवक समझा जाएगा और उन्हें अपनी पत्नी या पति तथा निर्भर बच्चों के साथ अपनी संपत्ति तथा देनदारी का पूरा ब्योरा 31 जुलाई 2016 तक संबद्ध केंद्र सरकार के विभागों को करना होगा।
लोकपाल और लोकायुक्त कानून 2013 के तहत अधिसूचित नियमों के तहत सभी लोकसेवकों को अपनी संपत्ति एवं देनदारी के बारे में सूचना हर साल 31 मार्च या उस वर्ष के 31 जुलाई से तक देनी होगी। वित्त वर्ष 2015-16 के लिए रिटर्न 31 जुलाई तक भरा जाता है। इसके अलावा सभी केंद्र सरकार के कर्मचारियों को भी उस तारीख तक पूरा ब्योरा देना होता हैं। अधिकारी ने कहा, कार्मिक मंत्रालय का नया नियम सरकार द्वारा वित्त पोषित एनजीओ में काम करने वाले अधिकारी लोकपाल के दायरे में आएंगे और अनुदान या कथित भ्रष्टाचार के लिए अनुदान के दुरुपयोग को लेकर कानूनी कार्रवाई होगी।
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