Highlights
- सप्ताह की शुरुआत में संसद की एक समिति ने डेटा सुरक्षा विधेयक पर रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया
- रिपोर्ट 29 नवंबर से शुरू होने वाले आगामी शीतकालीन सत्र में संसद में पेश की जाएगी
नई दिल्ली। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने बृहस्पतिवार को कहा कि देश में प्रौद्योगिकी और इंटरनेट को लेकर एक नया एवं आधुनिक कानूनी ढांचा आएगा और डेटा सुरक्षा विधेयक इस दिशा में पहला कदम है। चंद्रशेखर ने कहा कि सरकार और सार्वजनिक सेवाओं का "तेजी से" डिजिटलीकरण होगा और जल्द ही शुरू होने वाली 'डिजिटल इंडिया-2' योजना पिछले कुछ वर्षों में हासिल हुए लाभ का फायदा उठाने की कोशिश करेगी।
मंत्री ने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि इंटरनेट और प्रौद्योगिकी खुले, सुरक्षित और जवाबदेह बने , क्योंकि अगले कुछ वर्षों में 1.2 अरब भारतीय इंटरनेट का इस्तेमाल करने लगेंगे। चंद्रशेखर ने आधार 2.0 वर्कशॉप के समापन सत्र को संबोधित करते हुए कहा, "देश में प्रौद्योगिकी और इंटरनेट को लेकर एक नया आधुनिक कानूनी ढांचा आएगा। डेटा सुरक्षा विधेयक इस दिशा में पहला कदम है जिसे आप जल्द ही अगले कुछ महीनों में देखेंगे। यह भी संचालन के पूरे वातावरण में महत्वपूर्ण बदलाव लाएगा।" इस सप्ताह की शुरुआत में संसद की एक समिति ने कई विपक्षी सांसदों के विरोध के बीच डेटा सुरक्षा विधेयक पर रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया था। यह रिपोर्ट 29 नवंबर से शुरू होने वाले आगामी शीतकालीन सत्र में संसद में पेश की जाएगी। करीब दो साल के विचार-विमर्श के बाद निजी डेटा सुरक्षा विधेयक से संबंधित संसद की संयुक्त समिति की रिपोर्ट को सोमवार को अंगीकार कर लिया गया। इसमें उस प्रावधान को बरकरार रखा गया है, जो सरकार को अपनी जांच एजेंसियों को इस प्रस्तावित कानून के दायरे से मुक्त रखने का अधिकार देता है।
लोगों के निजी डेटा की सुरक्षा और डेटा सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना के मकसद से यह विधेयक 2019 में लाया गया था। इसके बाद विपक्षी दलों के सदस्यों की मांग पर इस विधेयक पर व्यापक विचार-विमर्श और आवश्यक सुझावों के लिए समिति के पास भेजा गया था। निजी डेटा सुरक्षा विधेयक के मुताबिक, केंद्र सरकार राष्ट्रीय हित की सुरक्षा, राज्य की सुरक्षा, लोक व्यवस्था और देश की संप्रभुता एवं अखंडता की रक्षा के लिए अपनी एजेंसियों को इस प्रस्तावित कानून के प्रावधानों से छूट दे सकती है। इस बीच, ऐसा समझा जाता है कि समिति ने सिफारिश की है कि मध्यस्थ के तौर पर काम न करने वाले सभी सोशल मीडिया मंचों को प्रकाशकों के तौर पर देखा जाना चाहिए और उन्हें उनके मंचों पर डाली जाने वाली सामग्री के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। समिति ने यह भी सिफारिश की है कि भारत में किसी भी सोशल मीडिया मंच को भारत में तब तक काम करने की मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए जब तक कि प्रौद्योगिकी को संभालने वाली मूल कंपनी देश में अपना एक कार्यालय स्थापित नहीं करे।