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MSME वर्गीकरण के नए मानदंड जुलाई से होंगे लागू, सरकार ने परिभाषा बदलने वाली अधिसूचना की जारी

एमएसएमई की मौजूदा परिभाषा और उनके मानदंड एमएसएमई अधिनियम 2006 पर आधारित हैं।

Edited by: India TV Paisa Desk
Published on: June 04, 2020 10:21 IST
MSME new definition, criterion to come into effect from July- India TV Paisa
Photo:GOOGLE

MSME new definition, criterion to come into effect from July

नई दिल्‍ली। देश में एक जुलाई 2020 के बाद से छह करोड़ से अधिक सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) का वर्गीकरण सरकार द्वारा तय नए मानदंडों के अनुरूप होने लगेगा। सरकार ने एमएसएमई के वर्गीकरण के लिए नए मानदंड तय किए हैं। इसके तहत 50 करोड़ रुपए तक के निवेश और 250 करोड़ रुपए तक का वार्षिक कारोबार करने वाली इकाइयां मध्यम दर्जे का उद्यम कहलाएंगी।

इसके साथ ही चाहे विनिर्माण इकाई हो अथवा सेवा क्षेत्र की इकाई एक करोड़ रुपए का निवेश और पांच करोड़ रुपए तक का कारोबार करने वाली इकाई को सूक्ष्म इकाई माना जाएगा। वहीं 10 करोड़ रुपए तक का निवेश और 50 करोड़ रुपए तक का कारोबार करने वाली इकाई लघु उद्यम श्रेणी में आएगी। अब विनिर्माण और सेवा क्षेत्र की इकाई के लिए वर्गीकरण का एक नया संयुक्त फॉर्मूला अधिसूचित किया गया है। इसके तहत अब विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के बीच कोई अंतर नहीं होगा।

एमएसएमई मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि नई परिभाषा से एमएसएमई क्षेत्र की वृद्धि और मजबूती का मार्ग प्रशस्त होगा। इसमें विशेषतौर से यह प्रावधान काफी उत्साहवर्धक होगा जिसके तहत निर्यात कारोबार को उनके कुल कारोबार की गणना में शामिल नहीं किया जाएगा। इससे एमएसएमई को अधिक से अधिक निर्यात प्रोत्साहन प्राप्त होगा। इससे छोटी इकाईयां एमएसएमई इकाई का लाभ छिन जाने की चिंता किए बिना अधिक से अधिक निर्यात कारोबार कर सकेंगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने सोमवार को एमएसएमई उद्यमों के वगीकरण की नई परिभाषा को मंजूरी दी थी। एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय ने देश में एमएसएमई की परिभाषा और मानदंडों में किए गए बदलावों को अमल में लाने के लिए अधिसूचना जारी कर दी है।

इसके मुताबिक नई परिभाषा और मानदंड एक जुलाई 2020 से अमल में आ जाएंगे। एमएसएमई की मौजूदा परिभाषा और उनके मानदंड एमएसएमई अधिनियम 2006 पर आधारित हैं। इसमें विनिर्माण और सेवा क्षेत्र की इकाईयों के लिए अलग-अलग मानदंड है वहीं वित्तीय सीमा के मामले में भी ये बहुत कम हैं।

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