नई दिल्ली। टाटा संस ने कहा कि साइरस मिस्त्री ने रतन टाटा के स्थान पर नए चेयरमैन के चयन के लिए 2011 में गठित चयन समिति को पर गुमराह किया था। टाटा संस ने कहा कि मिस्त्री ने टाटा समूह के लिए योजनाओं पर बड़े-बड़े बयान दिए, लेकिन वादे के अनुरूप इसके लिए प्रभावी प्रबंधन ढांचा और योजना नहीं दी।
टाटा संस की मुख्य बातें…
- मिस्त्री ने अपने वादे के अनुरूप पारिवारिक उपक्रम शापोरजी पल्लोनजी से दूरी नहीं बनाई
- मिस्त्री के प्रतिबद्धता से मुंह मोड़ने से ही निजी हितों से अछूते रह कर टाटा समूह का नेतृत्व करने की उनकी क्षमता को लेकर चिंता पैदा हुई।
- लाभांश आय (टीसीएस को छोड़कर) में लगातार गिरावट आई। मिस्त्री के कार्यकाल में कर्मचारियों की लागत दोगुना से अधिक हो गई
- मिस्त्री ने धीरे-धीरे सभी अधिकार और शक्तियां अपने हाथ में कर लीं।
- बड़े तरीके से समूह की कंपनियों के निदेशक मंडले में टाटा संस के प्रतिनिधित्व को हल्का किया
- मिस्त्री ने उनको दी गई खुली छूट का लाभ उठाकर प्रबंधन ढांचे को कमजोर किया
मिस्त्री ने टाटा पावर के निदेशक मंडल में बने रहने के लिए शेयरधारकों की मंजूरी मांगी
- इससे पहले शनिवार को साइरस मिस्त्री ने टाटा पावर के शेयरधारकों से प्रवर्तकों द्वारा उन्हें बोर्ड से हटाये जाने के प्रस्ताव के खिलाफ समर्थन मांगा है।
- उन्होंने कहा कि कंपनी ने उनके कार्यकाल में अन्य प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है।
- कंपनी ने साइरस मिस्त्री को निदेशक पद से हटाये जाने के प्रस्ताव पर विचार के लिये 26 दिसंबर 2016 को असाधारण बैठक बुलाई है।
उन्होंने शेयरधारकों को लिखे पत्र में कहा, टाटा पावर के लिए एकीकृत आधार पर जो प्रयास किए गए, उससे पिछले तीन साल में कंपनी के लाभ (ईबीआईटीडीए) में सुधार हुआ। पिछले कुछ साल में देश में बिजली क्षेत्र की नई रेटिंग हुई है और इसीलिए उनके कामकाज को सेंसेक्स की तरह तुलना करना उपयुक्त नहीं होगा।