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Massive Slowdown: चीन में गहराती मंदी से दुनिया चिंतित, दिन-ब-दिन बिगड़ रही है अर्थव्‍यवस्‍था की सेहत

चीन में मंदी का जुकाम, नझले तक पहुंचेगा तमाम आर्थिक आंकड़े इस ओर इशारा करते हैं। अब सवाल यह है कि आखिर चीन की मंदी से पूरी दुनिया क्‍यों घबराई हुई है?

Sachin Chaturvedi @sachinbakul
Updated : March 08, 2016 13:02 IST
Massive Slowdown: चीन में गहराती मंदी से दुनिया चिंतित, दिन-ब-दिन बिगड़ रही है अर्थव्‍यवस्‍था की सेहत
Massive Slowdown: चीन में गहराती मंदी से दुनिया चिंतित, दिन-ब-दिन बिगड़ रही है अर्थव्‍यवस्‍था की सेहत

नई दिल्ली। चीन की सरकारी कंपनियों से 60 लाख कर्मचारियों की छंटनी के संकेत, वित्‍त वर्ष 2016-17 के लिए जीडीपी ग्रोथ लक्ष्य घटाकर 6.5 फीसदी किया जाना और हांगकांग में घरों की बिक्री 25 वर्षों में सबसे कम रहना, दुनिया की फैक्‍ट्री चीन में मंदी का संकट कितना गहरा है, इस बात का अंदाजा आप इन तीन बातों से लगा सकते हैं। चीन में मंदी का यह जुकाम, आने वाले दिनों में नजले तक पहुंचेगा तमाम आर्थिक आंकड़े फिलहाल इस ओर इशारा करते हैं। अब सवाल यह है कि आखिर चीन की मंदी से पूरी दुनिया क्‍यों घबराई हुई है? आखिर क्यों चीन दुनिया के नक्शे परइ तनी अहमियत रखता है।

जवाब दो टूक है। चीन के दिक्कत में फंसने का मतलब दुनिया के तमाम देशों में महंगाई का बढ़ जाना है क्योंकि बड़ी मात्रा में उत्पादन के बल पर चीन बहुत सस्ते में चीजों का उत्पादन करता है। जिससे जहां एक ओर चीन को दुनिया की फैक्ट्री माना जाता है वही दूसरी ओर इन सस्‍ते उत्‍पादों की दुनिया भर के बाजारों में चीन की पैठ है। इस तरह एक झटके से चीन का संकट पूरी दुनिया का संकट बन सकता है। सिक्के का दूसरा पहलू और भी ज्यादा अहम है। अब क्योंकि चीन बहुत बड़ी मात्रा में उत्पादन करता है तो इस उत्पादन के लिए अब अपने आप ही तमाम कमोडिटीज का बड़ा उपभोक्ता भी बन जाता है। चीन में डिमांड का गिरना ही असल में ग्लोबल बाजार में कमोडिटी के गिरते दामों की बड़ी वजह भी है।

चीन ने घटाया जीडीपी का लक्ष्य

चीन ने 2016-17 के लिए अपनी विकास दर के लक्ष्य को कम करके 6.5 से 7 फीसदी के बीच कर दिया है। पिछले साल चीन की आर्थिक ग्रोथ 7 फीसदी से नीचे चली गई, जो कि 26 सालों में सबसे कम है। राष्ट्रपति जिनपिंग ने इससे पहले अधिकारियों को निर्देश दिया है कि देश की आर्थिक ग्रोथ 6.5 फीसदी से नीचे नहीं जानी चाहिए। दूसरी ओर फरवरी 2016 में हांगकांग में घरों की बिक्री 25 वर्षों के निचले स्तर पर आ गई है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह चीन में मंदी का संकेत है। पिछले कुछ समय से चीन की अर्थव्यवस्था धीमेपन के दौर से गुजर रही है और पिछले साल चीन की विकास दर 6.9 फीसदी तक लुढ़क गई थी। इसका खामियाजा पूरी दुनिया को भुगतना पड़ सकता है। चीन की बहुत सारी परियोजनाएं अफ़्रीका, भारत और पाकिस्तान समेत कई देशों में चल रही हैं, आर्थिक सुस्ती की वजह से खर्च में कटौती हो सकती है और इसका असर सीधे इन देशों की आर्थिक वृद्धि पर भी पड़ सकता है।

भारत-चीन व्यापार घाटा बढ़कर 44.7 अरब डॉलर हुआ

भारत और चीन के बीच व्यापार घाटा वर्ष 2015-16 की अप्रैल से जनवरी की अवधि के दौरान बढ़कर 44.7 अरब डॉलर का हो गया है। समीक्षाधीन अवधि के दौरान चीन को भारत का निर्यात 7.56 अरब डॉलर का हुआ जबकि चीन से भारत का आयात समीक्षाधीन अवधि में बढ़कर 52.26 अरब डॉलर का हो गया। वर्ष 2014-15 में यह घाटा 48.48 अरब डॉलर का हुआ था।

इसलिए चीन की मंदी से डरती है दुनिया

चीन की मंदी से इसलिए दुनिया डरती है, क्योंकि ग्लोबल जीडीपी में चीन की 13 फीसदी हिस्सेदारी है। शायद यह आंकड़ा आपको छोटा लगे तो इन बातों पर गौर करिये, पूरी दुनिया में एल्युमिनियम, निकेल, कॉपर, स्टील और कोयला की कुल खपत में करीब 50 फीसदी अकेले चीन करता है। इतना ही नहीं दुनियाभर में पैदा होने वाली 30 फीसदी चाय, 22 फीसदी मक्का और 17 फीसदी गेहूं की खपत अकेले चीन में होती है।

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