नई दिल्ली। कार बिक्री के मामले में देश की सबसे बड़ी कार कंपनी मारुति सुजुकी द्वारा अपनी पैरेंट कंपनी, जापान की सुजुकी, को रॉयल्टी भुगतान का मामला एक बार फिर चर्चा में है। प्रोक्सी एडवाइजर फर्म आईआईएएस ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि रेवेन्यू, मार्जिन और रिसर्च एंड डेवलपमेंट खर्च के आधार पर मारुती का रॉयल्टी भुगतान पिछले 15 सालों के दौरान छह गुना ज्यादा बढ़ चुका है। रिपोर्ट में इस रॉयल्टी भुगतान को सुजुकी की जबरन वसूली करार दिया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मारुति द्वारा सुजुकी को दिए जाने वाले प्रति कार बिक्री पर रॉयल्टी भुगतान की राशि पिछले 15 सालों में 6.6 गुना बढ़ चुकी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मारुति सुजुकी ने 2014-15 में अपनी शुद्ध बिक्री का 5.7 फीसदी और प्रॉफिट बिफोर रॉयल्टी का 36 फीसदी हिस्सा रॉयल्टी भुगतान के तौर पर किया है। वित्त वर्ष 2014-15 में मारुति सुजुकी ने अपनी पैरेंट कंपनी सुजुकी को कुल 2767.7 करोड़ रुपए का भुगतान रॉयल्टी के तौर पर किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 15 सालों में सुजुकी को प्रति कार बिक्री पर दी जाने वाली रॉयल्टी 6.6 गुना बढ़कर 21,415 रुपए हो गई है, जबकि इस दौरान प्रति कार औसत बिक्री प्राप्ती केवल 1.6 गुना बढ़ी है।
आईआईएएस के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर हेतल दलाल का कहना है कि सुजुकी की तुलना में मारुति भारत में ज्यादा मजबूत और लोकप्रिय ब्रांड है। चूंकि मारुति सुजुकी की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करती है, इस लिजाह से उसे रॉयल्टी देनी चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि रॉयल्टी की राशि कितनी हो। आईआईएएस ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सुजुकी का आरएंडडी पर कुल खर्च प्रति वाहन बिक्री का औसत 4 फीसदी है, जबकि मारुति से मिलने वाली रॉयल्टी इसकी कुल शुद्ध बिक्री का 6 फीसदी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि रॉयल्टी सुजुकी का अमिट अधिकार नहीं है और इसे मारुति के इस कैश फ्लो पर अपना स्पष्टीकरण देना चाहिए।
मल्टीनेशनल कंपनियों की भारतीय सहयोगी द्वारा रॉयल्टी भुगतान की राशि बहुत अधिक बढ़ गई है। ऐसा सरकार द्वारा 2009 में भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशी कंपनियों को रॉयल्टी भुगतान की सीमा को खत्म करने के बाद हुआ है। सरकार के इस कदम का उद्देश्य भारत को विदेशी निवेश के लिए ज्यादा आकर्षक बनाना था।
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