नई दिल्ली। भारत के विनिर्माण क्षेत्र की गतिविधियां दिसंबर में एक माह पहले की तुलना में थोड़ा धीमी रहीं लेकिन इस क्षेत्र के लिए 2018 की समाप्ति कुल मिला कर तेजी के साथ हुई। वर्ष के दौरान इकाइयों को लगातार कारोबार के नए ऑर्डर मिलते रहे और उन्होंने उत्पादन और नई भर्तियों का विस्तार किया। एक प्रतिष्ठित मासिक सर्वेक्षण में बुधवार को यह जानकारी मिली।
विनिर्माण कंपनियों के परचेज मैनेजरों (क्रय-प्रबंधकों) के बीच किए जाने वाले मासिक सर्वेक्षण में भारत के विनिर्माण क्षेत्र का गतिविधि सूचकांक निक्केई इंडिया परचेजिंग मैनेजर इंडेक्स दिसंबर में 53.2 पर रहा। यह नवंबर के 54 अंक से कम है। पीएमआई के नवंबर की तुलना में कम रहने बावजूद 2018 में दिसंबर महीना विनिर्माण क्षेत्र में सबसे अधिक तेजी दर्ज करने वाले महीनों में रहा।
यह लगातार 17वां महीना है जब विनिर्माण पीएमआई 50 से ऊपर रहा। सूचकांक का 50 से ऊपर रहना कारोबारी गतिविधियों में विस्तार दर्शाता है, जबकि 50 से नीचे का सूचकांक संकुचन का संकेत देता है।
सर्वेक्षण रिपोर्ट की लेखिका और आईएचएस मार्किट में प्रधान अर्थशास्त्री पॉलियाना डी लीमा ने कहा कि विनिर्माण पीएमआई दर्शाता है कि विनिर्माण क्षेत्र 2018 की समाप्ति पर ऊंचे स्तर पर रहा। भारतीय उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मांग बढ़ रही है, जिससे भारतीय कंपनियों को लाभ हो रहा है। लगातार 14वें महीने निर्यात ऑर्डरों में वृद्धि हुई है।
दिसंबर पीएमआई के आंकड़े 2018 में दूसरी बार सबसे ऊपर है। इसने वित्त वर्ष 2011-12 की तीसरी तिमाही के बाद से तिमाही औसत में सबसे अधिक योगदान दिया है। लीमा ने कहा कि तिमाही औसत पीएमआई 2011-12 की तीसरी तिमाही के बाद सबसे ऊपर है। यह संकेत देता है कि विनिर्माण क्षेत्र ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में अहम योगदान दिया है। कीमतों के मोर्चे पर, लागत मूल्य मुद्रास्फीति में अहम कमी देखी गई है और यह 34 महीने के निम्नतम स्तर पर आ गई है।
लीमा ने कहा कि मुद्रास्फीति दबाव में कमी आने के संकेत इस ओर इशारा करते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति के मामले में उदार रुख अपना सकता है। आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक 5 से 7 फरवरी को होनी है। रोजगार के मोर्चे पर लीमा ने कहा कि दिसंबर में रोजगार सृजन में कमी आई है क्योंकि कंपनियां आम चुनाव से पहले नई भर्तियां करने को लेकर सतर्क रुख अपना रही हैं। कंपनियों का मानना है कि विपणन पहलों, क्षमता विस्तार और मांग में सुधार के अनुमानों से उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।