नई दिल्ली। दुनिया की तेजी से विकसित होती प्रमुख अर्थव्यवस्था का गुब्बारा फूट सकता है। वित्त वर्ष 2015-16 में भारत की 7.6 फीसदी वार्षिक ग्रोथ ने इसे कमजोर वैश्विक आर्थिक वातावरण में भी बेहतर प्रदर्शन करने वाला बनाया है। इस साल अब तक, जीडीपी आंकड़े देखने में अच्छे लग रहे हैं और अच्छे मानसून भी आगे मदद करेगा। चूंकि भारत अपनी कुल जरूरत का 75 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है, ऐसे में तेल की कमजोर वैश्विक कीमतों से भी इसकी जीडीपी ग्रोथ को अच्छा समर्थन मिला है।
लेकिन यहां कुछ ऐसे कारण हैं, जो चिंता पैदा करते हैं। पिछले हफ्ते जारी हुए कुछ आंकड़े बताते हैं कि बैंकिंग सिस्टम में बढ़ते बैड लोन की समस्या एक गंभीर चिंता बनी हुई है। पिछले दो लगातार महीनों से इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन घट रहा है और बेरोजगारी पिछले पांच साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है।
इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन
इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन(आईआईपी), जो देश के फैक्ट्री उत्पादन का संकेतक है, लगातार दूसरे महीने अगस्त में घटा है। अगस्त में आईआईपी 0.7 फीसदी घटा है। जुलाई के दौरान इसमें 2.5 फीसदी की गिरावट आई थी। अगस्त में मैन्युफैक्चरिंग और माइनिंग ग्रोथ सबसे ज्यादा नकारात्मक रही है, जो इस बात का संकेत है कि रिकवरी अभी बहुत दूर की बात है। चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीने (अप्रैल-अगस्त) में आईआईपी 0.3 फीसदी घटा है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 4.1 फीसदी बढ़ा था। मैन्युफैक्चरिंग को लगातार कमजोर बिजनेस और खराब निवेश वातावरण का सामना करना पड़ रहा है।
बैड लोन
पूर्व रिजर्व बैंक गर्वनर रघुराम राजन का लक्ष्य था बैंकों को एनपीए मुक्त बनाना, जो अभी भी अधूरा है। 10 अक्टूबर को पेश किए गए ताजा आरबीआई के आंकड़े दर्शाते हैं कि भारतीय बैंकिंग सिस्टम में नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) दिसंबर 2015 के 121 अरब डॉलर की तुलना में जून 2016 में बढ़कर 138 अरब डॉलर हो गया है। आरबीआई ने बैंकों को मार्च 2017 तक बैड लोन के लिए प्रोविजन करने का समय दिया है। इसलिए कई बड़े बैंकों को हालिया तिमाही में बड़े घाटे का सामना करना पड़ा है। इसके बावजूद बैड लोन का घाव और बड़ा होता जा रहा है। वहीं दूसरी ओर सरकार ने बैंकिंग सिस्टम को और दक्ष बनाने के लिए सार्वजनिक बैंकों के विलय की योजना बनाई है। सरकार जल्द ही दो सार्वजनिक बैंकों के विलय की घोषणा कर सकती है।
बेरोजगारी
लेबर ब्यूरो द्वारा 15 सितंबर को जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015-16 में भारत में बेरोजगारी की दर अपने पांच साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई है। ऐसी रिपोर्ट आना उस वक्त ज्यादा खराब है, जब मोदी सरकार अपने प्रमुख मेड इन इंडिया अभियान के जरिये देश में मैन्युफैक्चरिंग और रोजगार के नए अवसर पैदा करने में का जोरशोर से जुटी हुई है। बेरोजगारी मिटाना भारतीय जनता पार्टी का एक मुख्य चुनावी वादा है। लेबर ब्यूरो द्वारा किए गए ऑल इंडिया सर्वे में शामिल कुल लोगों में से 77 फीसदी के पास नियमित आय का कोई साधन नहीं था।