हैदराबाद। उद्योग मंडल सीआईआई (CII )के अध्यक्ष नौशाद फोब्र्स ने कहा कि ऋण नहीं लौटाने वालों के बारे में नैतिकता के नजरिए से या उनकी ठाठ-बाट वाली जीवनशैली के आधार पर फैसला नहीं किया जाना चाहिए। संकट में फंसे शराब व्यवसायी विजय माल्या से 9,000 करोड़ रुपए ऋण वसूली के लिए बैंकों द्वारा किए जा रहे प्रयासों के बीच उन्होंने यह बात कही।
हालांकि, उन्होंने तुरंत कहा कि CII बैंकों का ऋण समय पर नहीं चुकाने वालों से ऋण वसूली के प्रयासों का पूरा समर्थन करता है क्योंकि कर्ज की बेहतर वसूली से ऋण चक्र अच्छा होगा। स्पष्ट रूप से माल्या मामले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, कानूनी दृष्टिकोण है, नैतिक दृष्टिकोण है और व्यापारिक नजरिया है। ऐसे में इस मामले में वास्तव में जो दृष्टिकोण अहमियत रखता है वह कानूनी दुष्टिकोण है।
फोब्र्स ने कहा, जब हम किसी चूककर्ताओं की ओर देखते हैं तो नैतिक दृष्टिकोण सामने आता है। हम कहते हैं कि वह ठाठ-बाट की जिदंगी जा रहा है लेकिन यह कानून के खिलाफ नहीं है। यह नैतिक मुद्दा है। उन्होंने कहा, व्यापार में चूक कानून के खिलाफ नहीं हैं दिवालिया कोई अपराध नहीं है। यह कारोबार में जोखिम को प्रतिबिंबित करता है। आप गलत कारोबार में फंस सकते हैं या आप गलत रास्ता चुन सकते हैं।
यह भी पढ़ें- सीआईआई ने जीडीपी आंकलन करने के फार्मूले को बताया अधूरा, ग्रोथ रेट 8 फीसदी रहने का लगाया अनुमान
फोब्र्स ने विस्तार से बताते हुए कहा, इसमें जो मुद्दा है वह कानूनी मुद्दा है। क्या इस प्रक्रिया में कौन सा कानून तोड़ा गया? यही कारण है कि जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाने वाले तथा कर्ज नहीं लौटाने वालों के बीच अंतर महत्वपूर्ण है। मेरे हिसाब से ऋण नहीं लौटा पाने वालों के साथ सहानुभूति होनी चाहिए जबकि जानबूझकर ऐसा नहीं करने वालों के साथ नहीं होनी चाहिए। जीएसटी विधेयक के बारे में उन्होंने कहा कि इस विधेयक पारित करने का दायित्व विपक्ष पर है। सार्वजनिक उपक्रम भेल चल रहा है घाटे में, 32 सरकारी कंपनियों में से 12 की हालत खराब है।
यह भी पढ़ें- सोशल रिस्पांसिबिलिटी निभाने में आगे बीएसई पर लिस्टेड कंपनियां, एक साल में खर्च किए 6400 करोड़ रुपए