नई दिल्ली। TCS को देश की सबसे बड़ी IT कंपनी बनाने के बाद अब एन चंद्रशेखरन देश के सबसे बिजनेस एंपायर टाटा ग्रुप में चेयरमैन की जिम्मेदारी संभालने जा रहे है। पर शायद ही कोई ये जानता हो कि कभी TCS में ‘गुमनाम’ एंप्लॉई की तरह रहने वाले चंद्रशेखरन ने कैसे इतने बड़े मुकाम को हासिल किया। आइए जानते है कि एस चंद्रशेखरन की जिदंगी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य…
कभी ‘गुमनाम’ एंप्लॉई थे चंद्रशेखरन
- टाटा संस के नए चेयरमैन नटराजन चंद्रशेखरन की शख्सियत की खूबी यह है कि वह जो ठान लेते हैं, उसे करके दिखाते हैं। शायद यही वह खूबी है, जिसने टीसीएस जैसी दिग्गज कंपनी के एक गुमनाम एंप्लॉई से उन्हें पहले उसका चेयरमैन बनाया और अब वह देश के सबसे बड़े कॉरपोरेट हाउस के चेयरमैन बनने जा रहे हैं।
ऐसे सामने आया चंद्रशेखरन का टैलेंट
- TCS के फॉर्मर वाइस चेयरमैन एस रामादोराई ने 1993 में चंद्रा का हुनर पहचाना और 1996 में उन्हें अपना एग्जिक्यूटिव असिस्टेंट बनाया।
- रामादोराई ने बताया, ‘चंद्रा के बारे में कई लोगों, क्लाइंट और सहकर्मचारी से अच्छा फीडबैक मिला था। उनमें वर्ल्ड क्लास टीम और वैल्यू सिस्टम बनाने की योग्यता है।’
- कुछ समय तक कंपनी के अंदर यह मजाक चलता रहा कि TCS का मतलब है- टेक चंद्रा सीरियसली। बहुत जल्द उन्होंने बिजनेस बढ़ाने की योग्यता कंपनी में साबित की।
- 1999 में उन्होंने ई-बिजनेस यूनिट शुरू की और उसे पांच साल के अंदर 50 करोड़ डॉलर तक पहुंचा दिया। 2002 में जीई से 10 करोड़ डॉलर की डील हासिल करके उन्होंने धाक जमा ली थी।
- यह किसी भारतीय कंपनी को मिली पहली 10 करोड़ डॉलर की डील थी।
- 2009 में रामादोराई के हटने के बाद वह टीसीएस के सीईओ बने।
- उनके बॉस रहने के दौरान कंपनी का रेवेन्यू 6.3 अरब डॉलर से बढ़कर 16.5 अरब डॉलर हो गया।
TCS के साथ चंद्रशेखन ने 1987 में की थी शुरुआत
- जनवरी, 1987 में टीसीएस को जॉइन करने के बाद उन्होंने तेजी से अपनी पहचान बनाई।
- चंद्रा के शुरुआती बॉस में एक और टीसीएस के फॉर्मर CFO एस महालिंगम ने बताया, शुरू से ही उन्हें एक लीडर माना जाता था।
- 1980 के दशक में उन्होंने कंपनी को जॉइन किया। उसी दौरान कई टैलेंटेड लीडर्स टीसीएस में आए थे। हालांकि, चंद्रा ने अपनी अलग पहचान बनाई। उन्होंने बहुत कम समय में करियर बनाया और ऐसा गिने-चुने लोग ही कर पाते हैं।
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पिता बनाना चाहते थे किसान
- न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए इंटरव्यू में एन चंद्रशेखरन ने बताया कि उनके पिता एक लॉयर थे, लेकिन दादा के गुजर जाने के बाद उन्होंने फार्मिंग शुरू कर दी।
- पिता की अपने बेटों किसान बनना चाहते थे। चंद्रशेखरन के मुताबिक जब वह कॉलेज में थे, तो उनके भाइयों ने शहरों में नौकरी पकड़ ली। इसके बाद चंद्रशेखरन कॉलेज पूरा होने के बाद अपने पिता का हाथ बटाने लगे।
- पिता की इच्छानुसार उन्होंने काफी समय तक उनके साथ किसानी में हाथ बंटाया। हालांकि इसमें उनका मन नहीं लगता था।
पिता ने समझी चंद्रेशखरन के मन की बात
- चंद्रशेखरन ने बताया कि जब वह अपने पिता के साथ खेतों में काम कर रहे थे, तो वह इससे खुश नहीं थे। मेरा मन आगे पढ़़ाई करने का था, लेकिन पिता से ये बात नहीं बोल पाता था।
- उन्होंने बताया कि करीब 5 महीने के बाद मेरे चेहरे पर निराशा पूरी तरह झलकने लगी थी। मुझे निराश देखकर मेरे पिता ने मुझसे बात की और मेरे मन की बात पूछी। मैंने भी उनके सामने अपनी आगे पढ़ाई करने की ख्वाहिश रखी।
- मेरी इच्छा का मेरे पिता ने भी सम्मान किया और मुझे पढ़ाई करने के लिए भेजा। इस तरह चंद्रशेखरन के बिजनेस करियर की शुरुआत हुई।