बीजिंग। चीन की एक बेल्ट वन रोड (OBOR) पहल पर 2013 से कुल 60 अरब डॉलर का निवेश किया गया है और उसकी अगले पांच साल में इस पर 600 से 800 अरब डॉलर (करीब 52 लाख करोड़ रुपए) का निवेश और करने की योजना है। आपको बता दें कि पूरी दुनिया में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए एशिया, यूरोप और अफ्रीका के 65 देशों को जोड़ने की चीन की इस परियोजना को ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना का नाम दिया गया, जिसे ‘न्यू सिल्क रूट’ के नाम से भी जाना जाता है। यह भी पढ़े: चीन को पछाड़ भारत बना दुनिया का सबसे बड़ा टू-व्हीलर मार्केट, रोजाना बिके 48 हजार यूनिट
अगले 5 साल में होगा 52 लाख करोड़ रुपए का निवेश
बेल्ट एंड रोड फोरम की दो दिन की बैठक से पहले सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने राष्ट्रीय विकास एवं सुधार आयोग के उपाध्यक्ष निंग जिज्हे के हवाले से लिखा है कि एक वर्ष में चीनी निवेश के 120 अरब से 130 अरब डॉलर हो जाने की संभावना है। अगले पांच साल में कुल निवेश 600 अरब से 800 अरब डॉलर (करीब 52 लाख करोड़ रुपए) तक हो जाएगा।
क्या है वन बेल्ट वन रोड परियोजना
चीन की इस परियोजना का नाम है ‘वन बेल्ट वन रोड’ (ओबीओआर), जो कि प्राचीन सिल्क रोड का 21वीं सदी वाला संस्करण है। OBOR का मकसद है व्यापार के लिए समुद्री और जमीनी, दोनों तरह के रास्तों का विकास करना है। OBOR व्यापारिक रास्तों के समानांतर बंदरगाहों, रेलवे और सड़कों का व्यापक नेटवर्क तैयार करने की संभावनाओं को खोलता है। चीन व्यापक पैमाने पर अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में रेल और सड़क नेटवर्कों का निर्माण कर रहा है। इस परियोजना का प्रमुख उद्देश्य चीन को अफ्रीका, मध्य एशिया और रूस से होते हुए यूरोप से जोड़ना है। यह भी पढ़े:तेजी से बढ़ते भारत के साथ प्रतिस्पर्धा को गंभीरता से ले चीन, नहीं तो भारत की सफलता देखता रह जाएगा
क्या होगा चीन को फायदा
एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस चीन को जाने वाला तेल सबसे पहले पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर या म्यांमार के क्याउकफियू बंदरगाह पर उतरेगा। ये दोनों बंदरगाह चीन ने विकसित किए हैं। इसके बाद यहां से यह तेल टैंकरों, पाइपलाइन या रेल नेटवर्क के जरिए पश्चिमी चीन पहुंचेगा। इस तरह से इस रास्ते में आने वाली उस आबादी के समृद्ध होने की संभावना खुलेगी, जो सदियों से पिछड़ेपन की शिकार है।
डॉलर का दबदबा खत्म करना चाहता है चीन
इस प्रोजेक्ट का एक आर्थिक पक्ष है, लेकिन इससे जुड़ी राजनीतिक महत्वाकांक्षा से इनकार नहीं किया जा सकता। अमरीकी प्रभुत्व का प्रमुख आधार है डॉलर का दबदबा और समंदरों पर इसका नियंत्रण। चीन इस दबदबे को खत्म करना चाहता है। यह भी पढ़े:भारत और चीन को लेकर रेटिंग एजेंसियों का दृष्टिकोण है अंसगत, सुब्रमण्यन ने की वैश्विक एजेंसियों की आलोचना
व्यापारिक रास्ते नियंत्रण चाहता है चीन
आर्थिक मोर्चे पर, चीनी इस मुकाम पर पहुंच गए हैं जहां पश्चिमी देशों के एक बड़े हिस्से ने, चीन द्वारा बनाई गई अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था, एशियन इंफ़्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी), में शामिल होने के लिए अमरीका को भी दरकिनार कर दिया है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्रों में चीन अमरीका की नाराज़गी मोल लेने को लेकर निश्चिंत नहीं है। इसलिए ओबीओआर चीन को एक वैकल्पिक रूट और बिना विवाद वाला नज़रिया अपनाने की छूट देता है। सबसे अहम यह है कि चीनी समुद्री रास्ते के मुक़ाबले ज़मीनी रास्ते को विकसित करने पर ज्यादा जोर देते हैं, जोकि एशिया में पश्चिमी दबदबे को खत्म करने के लिए बनाया गया है।
बैठक में भाग नहीं लेगा भारत
रविवार से हो रही चीन की हाई प्रोफाइल बेल्ट एंड रोड (वन बेस्ट, वन रोड या ओबीओआर) समिट में भारत नजर नहीं आएगा। भले ही इसको लेकर आधिकारिक तौर पर अभी तक कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन सूत्रों ने कहा कि भारत इस मीट में भाग न हीं लेगा। हालांकि चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने घोषणा की है कि बेल्ट एंड रोड फोरम (बीआरएफ) के दौरान भारत का प्रतिनिधित्व होगा। इस इनीशिएटिव को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रतिष्ठा से जुड़ी पहल के तौर पर देखा जा रहा है। वांग ने 17 अप्रैल को बिना खास ब्योरा दिए कहा था, ‘भले ही यहां भारत का कोई लीडर मौजूद नहीं है, लेकिन भारत का एक प्रतिनिधि मीट के दौरान मौजूद रहेगा।’