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खरीफ सीजन में धान बुवाई का रकबा 4.5 प्रतिशत बढ़ा, 24 प्रतिशत अधिक क्षेत्र में हुई दलहन की बुवाई

कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक खरीफ सत्र में अभी तक धान की बुवाई का रकबा 4.5 प्रतिशत बढ़कर 126 लाख हेक्टेयर हो गया है।

Abhishek Shrivastava
Published : July 15, 2017 12:00 IST
खरीफ सीजन में धान बुवाई का रकबा 4.5 प्रतिशत बढ़ा, 24 प्रतिशत अधिक क्षेत्र में हुई दलहन की बुवाई
खरीफ सीजन में धान बुवाई का रकबा 4.5 प्रतिशत बढ़ा, 24 प्रतिशत अधिक क्षेत्र में हुई दलहन की बुवाई

नई दिल्ली। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक खरीफ सत्र में अभी तक धान की बुवाई का रकबा 4.5 प्रतिशत बढ़कर 126 लाख हेक्टेयर हो गया है। वहीं दलहनों की बुवाई का रकबा 24 प्रतिशत बढ़कर 74.61 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया। खरीफ सत्र की बुवाई सामान्य तौर पर दक्षिण पश्चिम मानूसन के आरंभ के साथ शुरू होती है और जुलाई से गति पकड़ती है। इस सत्र की धान, तुअर, सोयाबीन, सूरजमुखी और कपास प्रमुख फसल हैं।

राज्यों से प्राप्त सूचना के अनुसार 14 जुलाई 2017 को कुल बुवाई का रकबा 563.17 लाख हेक्टेयर है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में 521.80 लाख हेक्टेयर था। धान की बुवाई चालू खरीफ सत्र में अभी तक 125.77 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में यह 120.32 लाख हेक्टेयर था।

दलहनों की बुवाई अभी तक 74.61 लाख हेक्टेयर में हुई है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में 60.28 लाख हेक्टेयर में की गई थी। मोटे अनाजों की बुवाई का रकबा अभी तक 113.06 लाख हेक्टेयर है, जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 98.79 लाख हेक्टेयर थी। तिलहनों की बुवाई अभी तक कमी दर्शाती 103.92 लाख हेक्टेयर है, जो रकबा पिछले साल 115.75 लाख हेक्टेयर था। नकदी फसलों में गन्ने की बुवाई चालू सत्र में अभी तक 47.94 लाख हेक्टेयर में की गई है, जो रकबा पिछले वर्ष की समान अवधि में 45.22 लाख हेक्टेयर था।

कपास की बुवाई अभी तक 90.88 लाख हेक्टेयर में की गई है, जिसका रकबा पिछले वर्ष की समान अवधि में 73.93 लाख हेक्टेयर था। जूट की बुवाई अभी तक कमी दर्शाता 6.98 लाख हेक्टेयर रह गया, जबकि रकबा पिछले वर्ष की समान अवधि में 7.51 लाख हेक्टेयर था।

इस वर्ष मानसून की बरसात सामान्य रहने की उम्मीद के साथ सरकार नए फसल वर्ष 2017-18 में एक बार फिर भारी मात्रा में खाद्यान्न और बागवानी फसलों के उत्पादन होने का लक्ष्य कर रही है। हालांकि भारी उत्पादन के परिणामस्वरूप स्थानीय बाजारों में कीमतों में गिरावट आई है, जिसके कारण किसानों की मुश्किलें बढ़ी हैं।

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