नई दिल्ली। माल एवं सेवा कर (GST) एक बढ़िया कर प्रणाली है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में खामियों को दूर करने के लिए सरकार को नोडल एजेंसी बनानी चाहिए और जिला स्तर पर नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए। यह बात व्यापारियों के प्रमुख संगठन कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कही। वह यहां CAIT और दिल्ली पत्रकार संघ द्वारा जीएसटी एवं मीडिया की भूमिका विषय पर आयोजित कार्यशाला में बोल रहे थे।
CAIT का दावा है कि वह देश के छह करोड़ व्यापारियों और 40 हजार से अधिक व्यापारिक संगठनों का प्रतिनिधित्व करता है। खंडेलवाल ने कहा कि जीएसटी एक बढ़िया कर प्रणाली है जिसमें 17 प्रकार के कर खत्म कर दिए गए, लेकिन इसके क्रियान्वयन में खामियां रहीं जिससे व्यापारियों को परेशानियों का सामना करना पड़ा।
उन्होंने कहा कि व्यापारी कर देने से नहीं डरते और न ही वे कर चोरी करना चाहते हैं, लेकिन प्रणाली में सुधार किया जाना चाहिए। जीएसटी पर कई चीजों को लेकर अस्पष्टता है और अधिकारी भी इस बारे में सटीक जानकारी नहीं दे पाते हैं। खंडेलवाल ने कहा कि मोबाइल फोन पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगता है और उसके चार्जर पर 28 प्रतिशत और ये दोनों चीजें एक ही डिब्बे में आती हैं। ऐसे में नियम के तहत वह जीएसटी वसूला जाना चाहिए जो संबंधित डिब्बे में बंद प्रमुख उत्पाद पर लगता है। क्योंकि डिब्बे में बंद मोबाइल प्रमुख उत्पाद है, न कि चार्जर। ऐसे में उस पर 18 प्रतिशत कर वसूला जाना चाहिए। लेकिन अधिकारी अपनी मनमानी से इसकी गलत व्याख्या कर चार्जर को प्रमुख उत्पाद बता देते हैं और कहते हैं कि चार्जर के बिना तो मोबाइल चल ही नहीं सकता। इसलिए यह प्रमुख उत्पाद है और इस तरह इस वस्तु पर 28 प्रतिशत कर वसूला जाता है।
उन्होंने कहा कि यदि चार्जर की जगह मोबाइल फोन पर अधिक जीएसटी लगता तो तब अधिकारी अधिक कर वसूलने के लिए मोबाइल को प्रमुख उत्पाद बताते। इसलिए चीजों का स्पष्ट होना बहुत जरूरी है और अधिकारियों की मनमानी पर भी रोक लगाए जाने की आवश्यकता है जिससे कि एक अच्छी प्रणाली अच्छी तरह से लागू हो सके। उन्होंने कहा कि जीएसटी पर भ्रम को दूर करने तथा प्रणाली के सही क्रियान्वयन के लिए सरकार को नोडल एजेंसी बनानी चाहिए और हर जिले में नोडल अधिकारियों की नियुक्ति करनी चाहिए। खंडेलवाल ने कहा कि आज भी 60 प्रतिशत व्यापारियों के पास कंप्यूटर नहीं हैं, ऐसे में उनसे कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वे इस प्रणाली को समझाने या शिकायतों के लिए ट्विटर हैंडल जैसे माध्यमों का इस्तेमाल करें।
उन्होंने कहा कि देश में व्यापारियों के 20 हजार से अधिक कार्यालय हैं। हमने सरकार से कहा था कि इन कार्यालयों को जीएसटी सुविधा केंद्र बना दो और बाजारों में कंप्यूटर कियोस्क लगाए जाएं, लेकिन सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। खंडेलवाल ने कहा कि व्यापारियों की बात सरकार तक पहुंचाने और उनकी समस्याओं के समाधान में मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका है और जब मीडिया मुद्दा उठाता है तभी सरकार सुनती है, अन्यथा व्यापारियों की बात नहीं सुनी जाती।
उन्होंने कहा कि आर्थकि संपादकों को अर्थ की खबरों को और ज्यादा जगह देनी चाहिए। यह चिंता की बात है कि 12 पृष्ठ के अखबार में सिर्फ एक पेज अर्थ का होता है। मीडिया को छोटे एवं मंझाले कारोबारियों के मुद्दों को प्रमुखता से स्थान देना चाहिए। इस अवसर पर अन्य वक्ता हरिकिशन शर्मा ने कहा कि पहले लगता था कि जीएसटी को लेकर राजनीतिक सहमति नहीं बन पाएगी, लेकिन इस पर राजनीतिक सहमति बनी। जो भी समस्याएं आईं, वे नौकरशाही के तैयार न होने तथा पर्याप्त प्रौद्योगिकी अवसंरचना न होने की वजह से आईं। हालांकि अब स्थिति सुधर रही है। इस मौके पर देशभर के विभिन्न मीडिया समूहों के सौ से अधिक पत्रकार मौजूद थे।