नई दिल्ली। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को इनसोल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड के लिए लाए गए अध्यादेश की वकालत करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य एक साफ और प्रभावी सिस्टम तैयार करना है। सरकारी बैंकों द्वारा पूंजीपतियों के ऋण माफ किए जाने की अफवाहों को सिरे से खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि वास्तव में उनकी सरकार ने बैंको का पैसा नहीं चुकाने वाले बड़े-बड़े चूककर्ताओं की पहचान कर उनके खिलाफ ठोस कार्रवाई और समयबद्ध वसूली की व्यवस्था की है।
जेटली ने बैंकों के समक्ष वसूल नहीं हो रहे कर्जों की भारी समस्या के लिए पिछली सरकार के समय के निर्णयों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा वास्तव में 2008-2014 के बीच सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने कई उद्योगों को बड़े-बड़े कर्ज दिए और ऋण चूककर्ताओं पर सख्त कार्रवाई करने और अवरुद्ध कर्जों को गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की श्रेणी में डालने के बजाये ऋण पुनर्गठन के तहत उन्हें आगे और कर्ज दे कर एनपीए की समस्या पर पर्दा डाला जाता रहा।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के समय एनपीए के मामले में किसी बड़े चूककर्ता का ऋण माफ नहीं किया है बल्कि इसके विपरीत शीर्ष 12 चूककर्ताओं के मामले (दिवाला कानून के तहत) राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के समक्ष रखे गए ताकि इन मामलों में छह से नौ महीने में समयबद्ध तरीके से वसूली की जा सके। जेटली ने पूंजीपतियों को ऋण माफी की गल्प कथा शीर्षक से अपने लेख में कहा कि पूर्ववर्ती सरकार ने ऐसे ऋणों को इस प्रकार से पुनर्गठन किया कि बैंकों को हुए नुकसान को छिपाया गया। बैंक ऐसे बकायेदारों को बार-बार कर्ज देते गए।
उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने इस सांठगांठ का पता लगाया और इन चूककर्ताओं के संदर्भ में ठोस निर्णय किया। बैंकों का धन नहीं लौटाने वाली कंपनियों के संदर्भ में संशोधनों सहित दिवाला एवं दिवालियापन संहिता लागू की गई। यह निर्णय किया गया कि संबंधित कर्जदारों को ऐसी कंपनियों के कारोबार में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी। वित्त मंत्री ने कहा कि इसके साथ ही बैंकों को जरूरी पूंजी प्रदान की गई ताकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक मजबूत हों और राष्ट्र के विकास में योगदान दे सकें। बैंकों को पूंजी देने का कारण यह है कि वे मजबूर न रहें और मजबूत बन सकें।
जेटली ने कहा कि पिछले कुछ समय से ऐसी अफवाह फैलाई जा रही है कि बैंकों द्वारा पूंजीपतियों के ऋणों को माफ कर दिया गया है। अब समय आ गया है कि देश तथ्यों को जाने। उन्होंने आंकड़ों के साथ आरोप लगाया कि पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में बैंकों की एनपीए को छिपाया गया। वर्तमान सरकार के दौरान 2015 में अस्ति गुणवत्ता समीक्षा के बाद यह बात सामने आई कि इतनी बड़े पैमाने पर एनपीए मौजूद हैं । एनपीए के सही पहचान से यह स्पष्ट हुआ है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एनपीए मार्च 2015 के 2,78,000 करोड़ रुपए से बढ़कर जून 2017 में 7,33,000 करोड़ रुपए हो गया।