नई दिल्ली। आर्थिक समीक्षा 2019-20 में आवश्यक वस्तु अधिनियम को निरस्त करने की सिफारिश की गई है। मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति वी सुब्रमणियन ने कहा कि आवश्यक वस्तु अधिनियम को निरस्त करकेउसके स्थान पर कीमत स्थिरीकरण कोष, ग्राहकों की सहायता करने के लिए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी), नवाचारों के लिए प्रोत्साहनों, बाजार एकीकरण में वृद्धि करने और माल एवं सेवाओं के निर्बाध प्रवाह जैसे बाजार अनुकूल मध्यस्ता के अधिनियम को लाया जाना चाहिए।
आर्थिक सर्वेक्षण में प्याज के मूल्यों में वृद्ध सहित दाल का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। इससे यह सिद्ध किया गया है आवश्यक वस्तु अधिनियम अब अपनी प्रासंगिता खो चुका है इसलिए इसे निरस्त किया जाना चाहिए। आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि भारत में प्याज की पफसल की कटाई करने के तीन मौसम हैं अर्थात खरीफ (अक्टूबर-दिसंबर), बिलंबित खरीफ (जनवरी-मार्च) और रबी (मार्च-मई)। लगभग मई से सितंबर तक की अवधि होती है, जब प्याज की मांग को व्यापारियों/थोक विक्रेताओं द्वारा जमा किए गए स्टॉक से पूरा किया जाता है।
अगस्त-सितंबर 2019 में भारी बारिश के परिणामस्वरूप प्याज की खरीपफ फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा जिससे बाजार में कम आवक हुई और प्याज की कीमतों पर ऊपरी दबाव पड़ा। यह खरीफ फसल आमतौर पर अक्टूबर से दिसंबर तक की अवधि तक और बाजार के विलंवित खरीफ फसल से नई प्याज के आने तक मांग को पूरा करती है।
लगातार बढ़ती प्याज की कीमतों को देखते हुए देश भर में 29 सिंतबर 2019 को ईसीए के तहत स्टॉक सीमाएं निर्धारित की गई थीं, खुदरा व्यपारियों के लिए 100 क्विंटल और थोक व्यापारियों के लिए 500 क्विंटल की सीमा तय की गई थी, जिन्हें नाप में क्रमशः 20 क्विंटल और 250 क्विंटल तक कम किया गया था। स्टॉक सीमाएं इस लिए लगाई गई थीं ताकि बाजार में स्टॉक जारी करते हुए प्याज के बढ़ते मूल्य पर नियंत्राण रखा जा सके और व्यापारियों द्वारा जमा खोरी को रोकते हुए बाजार मे आपूर्ति बढ़ाई जा सके।
यद्यपि स्टॉक सीमा के निर्धरण का सिंतबर 2009 के बाद प्याज के थोक और खुदरा मूल्यों की अस्थिता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। कम स्टॉक सीमाओं के कारण ही व्यापरियों और थोक विक्रेताओं के अक्टूबर में ही अधिकतर खरीफ फसल को ऑपफलोड कर दिया था जिसके परिणामस्वरूप नवंबर, 2019 के अस्थिरता में तेजी से वृद्धि हुई। खुरदा मूल्यों में आस्थिरता इसे थोक मूल्य में प्रकट करती है।