नयी दिल्ली। सरकार ने गुरुवार को लोकसभा में 'औद्योगिक संबंध संहिता, 2019' और उससे संबंधित एक विधेयक पेश किया जिसमें श्रमिक संघ, औद्योगिक प्रतिष्ठानों या उपक्रमों में रोजगार की शर्तें, औद्योगिक विवादों की जांच तथा निपटारे एवं उनसे संबंधित विषयों के कानूनों को मिलाने का और संशोधन करने का प्रावधान है। सदन में श्रम और रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने इस संबंध में विधेयक पेश किया।
हालांकि, इससे पहले विधेयक पेश किए जाने का विरोध करते हुए आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन, तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय और कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने उक्त संहिता को कर्मचारी विरोधी बताते हुए सरकार से इसे श्रम पर संसदीय स्थाई समिति को भेजने की मांग की। प्रेमचंद्रन ने कहा कि इसमें राज्यों से जरूरी परामर्श नहीं किया गया है। सौगत राय ने कहा कि किसी मजदूर संगठन ने इस संहिता की मांग नहीं की थी और उद्योग संगठन चाहते थे, इसलिए सरकार इसे लेकर आई है। उन्होंने इसे 'श्रमिक विरोधी' बताते हुए कहा कि इसे श्रम पर स्थाई समिति को भेजा जाना चाहिए। चौधरी ने भी इसे 'श्रमिक विरोधी' बताते हुए स्थाई समिति को भेजने की मांग की।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि सदस्यों ने जो भी कारण बताए हैं, वह विधेयक के विरोध में हैं और चर्चा में रखे जाने चाहिए। विधेयक पेश किए जाने के विरोध में कोई कारण सदस्य नहीं बता रहे। संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि सदस्यों ने एक भी कारण ऐसा नहीं बताया है जिससे साबित हो कि इस सदन को विधेयक लाने का विधायी अधिकार नहीं है।
भाकपा के के. सुब्बारायन और माकपा के अब्दुल मजीद आरिफ तथा एस वेंकटेशन ने भी विधेयक पेश किए जाने के विरोध में बोलने की अनुमति मांगी लेकिन लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि पूर्व में नोटिस नहीं दिया गया। सदस्य चर्चा के दौरान विस्तार से अपनी बात रख सकते हैं। बात रखने की अनुमति नहीं मिलने पर वामदलों के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया।
संतोष गंगवार ने कहा कि सरकार लंबी चर्चा और श्रम संगठनों तथा सभी राज्य सरकारों से परामर्श के बाद औद्योगिक संबंध संहिता लेकर आई है। इसमें कोई भी प्रावधान मजदूरों के हक के खिलाफ नहीं है। इसके बाद उन्होंने 'औद्योगिक संबंध संहिता, 2019' को सदन में पेश किया।