भारतीय ई-कॉमर्स इंडस्ट्री के तमाम दिग्गजों ने जीएसटी पास होने परी अपनी खुशी का इजहार ट्विटर पर किया है:
ई-कॉमर्स कंपनियां मौजूदा टैक्स स्ट्रक्चर से संघर्ष कर रही थीं, जिसे इस इंडस्ट्री के पैदा होने से कई साल पहले बनाया गया था। इंडस्ट्री अक्सर यह शिकायत करती थी कि पुराने टैक्स सिस्टम से ऑनलाइन रिटेल स्टार्टअप्स के रास्ते में बाधा पैदा हो रही है।
भारतीय ई-कॉमर्स को जीएसटी से होने वाले प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:
एक देश – एक कानून
कंपनियां अलग-अलग राज्यों में विभिन्न टैक्स कानून को समझने और उनका पालन करने को लेकर काफी संघर्ष कर रही थीं। छोटे शहरों और कस्बों तक विस्तार ही ऑनलाइन रिटेलर्स की सफलता का मूल मंत्र है, ऐसे में प्रत्येक राज्य में उसकी जरूरत के मुताबिक टैक्स देना और कानूनों का पालन करना सबसे बड़ी समस्या था। जीएसटी के आने के बाद यह समस्या खत्म हो जाएगी।
दोहरा टैक्सेशन नहीं
चूंकि उत्पाद वेबसाइट के जरिये खरीदे और बेचे जाते हैं, ऐसे में अक्सर राज्यों के बीच यह विवाद पैदा होता है कि सेल्स टैक्स कहां वसूला जाना चाहिए, उस राज्य में जहां विक्रेता स्थित है या वहां जहां खरीदार है।
मौजूना कानून के मुताबिक कंपनियां उस राज्य को टैक्स देंगी जहां विक्रेता स्थित है, लेकिन इसे कुछ राज्य चुनौती दे रहे हैं। पिछले साल केरल ने ई-कॉमर्स कंपनियों के एक समूह पर सेल्स टैक्स चोरी के आरोप में 54 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया था। इनमें फ्लिपकार्ट, जबोंग, मिंत्रा और जोवी डॉट कॉम शामिल हैं। फ्लिपकार्ट ने इस जुर्माने को केरल हाईकोर्ट में चुनौती दी और जीत भी हासिल की। जीएसटी उस राज्य में लिया जाएगा जहां उपभोक्ता होगा, इसका मतलब हुआ कि यहां मैन्युफैक्चरिंग पर एक्साइज, वैट और किसी विशेष क्षेत्र के लिए एंट्री टैक्स जैसे अतिरिक्त टैक्स का भुगतान नहीं करना होगा।
केपीएमजी इंडिया के पार्टनर-ई-कॉमर्स श्रीधर प्रसाद इसे इस तरह समझाते हैं
मान लीजिए एक उपभोक्ता जो मुंबई में है एक ई-कॉमर्स कंपनी से, जिसका हेडक्वार्टर बेंगलुरु में है, ऑनलाइन एक मोबाइल फोन खरीदता है, इस मोबाइल को बेचने वाला वेंडर दिल्ली का है। ग्राहक ने यह फोन अपनी मां के लिए खरीदा है, जो कोलकाता में रहती हैं। और यह पैकेट कोलकाता के पते पर भेजा गया है। प्रोडक्ट डिलीवरी का पता पश्चिम बंगाल राज्य में है इसलिए इस बिक्री से इस राज्य को टैक्स मिलेगा।
पूरे भारत में फ्री मूवमेंट
जीएसटी से भारत के विभिन्न राज्यों के बीच वस्तुओं के स्रोत, डिस्ट्रीब्यूशन और वेयरहाउसिंग की आसान व्यवस्था हो जाएगी, ठीक उसी प्रकार जैसे की यूरोपियन यूनियन के बीच है। वर्तमान में राज्यों की सीमा पर जांच चौकी की वजह से ट्रकों की आवाजाही पूरे देश में धीमी है। भारत में ट्रक एक दिन में 280 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं, जबकि यूएस में एक ट्रक एक दिन में 800 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। जीएसटी के बाद डिलीवरी भी बहुत फास्ट हो जाएगी।
अस्पष्टता होगी कम
भारत में अधिकांश टैक्स कानून तब बनाए गए थे, जब ई-कॉमर्स का यहां नामोनिशां भी नहीं था। इस वजह से राज्यों और कंपनियों के बीच कानून की व्याख्या पर मतभेद था। उदाहरण के तौर पर, कर्नाटक टैक्स विभाग ने 2014 में अमेजन इंडिया को उसके वेयरहाउस से कुछ उत्पादों की बिक्री राज्य में करने से रोक दिया और कुछ मर्चेंट्स के लाइसेंस निरस्त कर दिए, जो कंपनी को उत्पादों की आपूर्ति करते थे। कर्नाटक का कहना था कि अमेजन को वेयरहाउस में रखे गए सामान पर टैक्स देना होगा। हालांकि, अमेजन का दावा था कि यह उसका वेयरहाउस नहीं है बल्कि फुलफिलमेंट सेंटर है और यहां रखे स्टॉक पर कंपनी को कोई लाभ नहीं कमा रही है बल्कि वह इस पर केवल कमीशन ले रही है।
अनावश्यक पेपरवर्क से मिलेगा छुटकारा
पिछले साल से उत्तर प्रदेश और उत्तारांचल जैसे उत्तरी भारत के राज्यों में फ्लिपकार्ट, स्नैपडील और अमेजन इंडिया को 5000 रुपए मूल्य से अधिक के उत्पादों की डिलीवरी करने से रोक दिया गया है। इन राज्यों के टैक्स विभाग ने खरीदार के लिए डिलीवरी के समय वैट घोषणा फॉर्म भरना अनिवार्य कर दिया है। यदि खरीदार ऐसा नहीं करते हैं तो अधिकारी खरीदे गए उत्पाद को जब्त कर सकते हैं।
टैक्स का बोझ होगा कम
सरकार ने अभी तक जीएसटी रेट को तय नहीं किया है, कुछ ई-कॉमर्स कंपनियों का मानना है कि जीएसटी से उनके ऊपर टैक्स का बोझ कम होगा। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जीएसटी रेट 15 से 18 फीसदी के बीच रह सकता है। ऑनलाइन फर्नीचर रिटेलर अर्बन लैडर के फाउंडर और सीईओ आशीष गोयल का कहना है कि यदि आप सभी टैक्सों को एक साथ रखते हैं तो यह 27-32 फीसदी के बीच बैठता है, जीएसटी जो कि 18-19 फीसदी के दायरे में होगा, इससे 8-10 फीसदी टैक्स का बोझ कम होगा, जिसका फायदा उपभोक्ताओं तक जरूर पहुंचेगा।
नकारात्मक पहलू
हालांकि जीएसटी अधिकांश मामलों में फायदेमंद ही है, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि जीएसटी से निकट भविष्य में कुछ चुनौतियां भी पैदा होंगी। इंफोसिस के पूर्व कार्यकारी मोहनदास पई का कहना है कि ई-कॉमर्स कंपनियों को नए टैक्स सिस्टम में लगातार टैक्स फाइलिंग से संघर्ष करना होगा। पई ने कहा कि यह नया कानून कहता है कि ई-कॉमर्स कंपनियों को उनके पोर्टल से होने वाली बिक्री पर टैक्स संग्रह करना होगा और उन्हें मासिक और तिमाही आधार पर रिटर्न फाइल करना होगा। इसलिए उनके ऊपर टैक्स संग्रह करने और उसे सरकार के पास जमा करने की जिम्मेदारी होगी और यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह टैक्स चोरी नहीं कर ही हैं मासिक और तिमाही आधार पर रिटर्न फाइल करना होगा।