नई दिल्ली। लगातार यह दूसरा साल है जब देश सूखे जैसे हालात का सामना कर रहा है। इस साल सामान्य के मुकाबले 14 फीसदी और पिछले साल 12 फीसदी कम बारिश रिकॉर्ड की गई थी। देश में कम बारिश की प्रमुख वजह अल-नीनो का प्रभाव था। वैज्ञानिकों की माने तो अल-नीनो अब तक के इतिहास में सबसे प्रभावशाली है और आने वाले दिनों में इसके और बढ़ने की संभावना है। लेकिन इस बीच कई अनुमान इस बात का इशारा कर रहे हैं कि हालात बदल सकते हैं। इन अनुमान के मुताबिक अल-नीनो के प्रभाव को ला-नीना खत्म कर सकता है।
अब तक के इतिहास का सबसे प्रभावी अल-नीनो
पिछले हफ्ते वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है कि दुनिया भर में सूखा, बाढ़ और तूफान लाने वाला अल-नीनो अब तक के इतिहास में सबसे प्रभावशाली है। दक्षिण अमेरिका के तट पर प्रशांत महासागर के एक भाग में तापमान औसत से 0.5 डिग्री ऊपर चले जाने पर अल-नीनो घोषित किया जाता है। लेकिन, अभी वहां का तापमान औसत से 3 फीसदी ज्यादा है, जो कि 1997 के रिकॉर्ड 2.70 डिग्री से भी अधिक है। 2015 के दौरान इंडोनेशिया में विनाशकारी जंगल की आग (अभी भी जारी), ऑस्ट्रेलिया और भारत में सूखा और पेरू में बाढ़ की वजह अल-नीनो है।
अल-नीनो पर भारी पड़ेगा ला-नीना
दक्षिण अमेरिका के पास समुद्र का तापमान बढ़ता है तो अल-नीनो बनता है। अल-नीनो पूर्व की दिशा में बहने वाली हवा को कमजोर करता है। इसके अलावा इंडोनेशिया के पास मानसूनी हवाओं की ताकत को कम कर देता है। इसकी वजह से देश में कम बारिश होती है। इसके विपरीत ला-नीना, कम तापमान से संबंधित है, जो कि हवाओं और तूफान को ताकत प्रदान करता है। इसकी वजह से हमारे देश में मानसून में अच्छी बारिश होती है।
प्रशांत महासागर के कुछ नाजुक क्षेत्रों में तापमान अभी भी बढ़ रहा है। इसकी वजह से भारत को एक और सूखे का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन इसके खत्म होने की भी संभावना है। बिजनेस इनसाइडर में छपी रिपोर्ट के मुताबिक कई अनुमान से संकेत मिलता है कि अगले नौ महीने में अल-नीनो का प्रभाव तेजी से कम होगा और ला-नीना का प्रभाव बढ़ेगा।
भारत में सूखा
भारत के लिए मानसून कितना महत्वपूर्ण है? इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि केंद्र सरकार ने इस साल अपने सालाना क्राइसिस मैनेजमेंट प्लान में कहा कि देश में 32.9 करोड़ हेक्टेयर में से 77.6 फीसदी क्षेत्र सूखा प्रभावित है। हाल के वर्षों का यह सबसे बड़ा सूखा है। मध्य दक्षिण के पठार और उत्तर भारत सहित देश के कई हिस्सों में 2012 के बाद सामान्य बारिश नहीं हुई है। देश की 60 फीसदी कृषि योग्य भूमि सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर है।
Source: Scroll India