वॉशिंगटन। भारत की विदेश नीति में बदलाव आने से न केवल भारतीय व्यावसायियों के लिए नए रास्ते खुले हैं बल्कि अब वह पुरानी रक्षात्मक सोच को छोड़कर आगे बढ़ने लगे हैं। एक प्रमुख भारतीय उद्योग संगठन ने यह बात कही है। अमेरिका-भारत आर्थिक संबंधों और मोदी-ओबामा की बीच होने वाले अंतिम शिखर सम्मेलन को लेकर चल रही चर्चा में भाग लेते हुए भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के अध्यक्ष नौशाद फोर्ब्स ने कहा कि क्षेत्र विशेष पर केंद्रित रणनीति से भारत व्यापार के परिणामस्वरूप जीतने और घाटा उठाने वाले से उचित ढंग से निपटने में सक्षम होगा।
सीआईआई अध्यक्ष ने कहा, भारत की विदेश नीति में आए बदलाव से भारत के लिए व्यापार बातचीत में नए मार्ग प्रशस्त हुए हैं। नीति में बदलाव से भारतीय व्यावसायियों में पहले जहां रक्षात्मक सोच थी अब उसका दृष्टिकोण बाहर की तरफ देखने वाला बना है। कार्यक्रम का आयोजन सीआईआई ने सेंटर फॉर स्ट्रेट्जिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (सीएसआईएस) ने किया।
उन्होंने कहा कि पिछले दो साल के दौरान भारत में करीब 64 विधेयकों को पारित किया गया। कारोबार करना सुगम बनाने के लिए ई-बिजनेस पोर्टल जैसे कई कदम उठाए गए। दिवाला कानून को पारित कर पारदर्शिता लाने जैसे कदमों से भारत ने विदेशी और घरेलू निवेशकों के लिए एक मजबूत और सुरक्षित निवेश आधार बनाने की अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। फोर्ब्स ने माना कि अमेरिका, भारत के लिए एक रणनीतिक भागीदार है, इसके साथ ही उन्होंने आगे कहा कि भारत भी अमेरिकी अर्थव्यवस्था में एक उल्लेखनीय भागीदार है। भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में रोजगार सृजन और निवेश से जो आर्थिक समृद्धि लाई है उसे भी स्वीकार किया जाना और समझना चाहिए। भारतीय व्यावसायियों ने अमेरिका में करीब 15 अरब डॉलर का निवेश किया है और 91,000 लोगों को रोजगार दिया है। भारत चाहता है कि अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार 2025 तक मौजूदा 100 अरब डॉलर से बढ़कर 500 अरब डॉलर तक पहुंच जाए।