मानसून के पूर्वानुमान की परिशुद्धता में सुधार के लिए भारत सरकार 6 करोड़ डॉलर (400 करोड़ रुपए) के निवेश से एक सुपर कम्प्यूटर खरीदेगी। यह नई टेक्नोलॉजी ठीक वैसी होगी, जैसी कि अभी अमेरिका में उपयोग की जा रही है। यह कम्प्यूटर थ्री डायमेंशनल मॉडल देगा, जो यह अनुमान लगाने में मदद करेंगा कि मानसून किस तरह डेवलप हो सकता है। भारत के भू-विज्ञान सचिव एम राजीवन ने कहा है कि
यदि सबकुछ अच्छा रहा तो हम 2017 में सांख्यिकी मॉडल के स्थान पर डायनामिकल मॉडल पर काम शुरू कर देंगे। पिछले 10 सालों में मानसून के अनुमान की परिशुद्धता में अपनी काफी निकटता हासिल की है, लेकिन मानसून अभी भी एक बहुत जटिल मौसम प्रणाली बना हुआ है, जिसे पूरी तरह से समझने की क्षमता केवल भगवान के पास है।
शुद्धता की कमी
भारत में अच्छी बारिश के लिए नेता से लेकर जनता तक सभी को भगवान की कृपा के लिए प्रार्थना करते हुए आसानी से देखा जा सकता है। सरकारी एजेंसी भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) और निजी कंपनी स्काइमेट दोनों ही अपने अनुमानों पर खुद ज्यादा भरोसा नहीं करते हैं। दोनों ही 2009 के सूखे का अनुमान लगाने से चूक गए, जो पिछले 40 साल में सबसे भयंकर सूखा था। 2015 के लिए स्काइमेट ने सामान्य मानसून का अनुमान लगाया था, जबकि आईएमडी ने सूखे की संभावना व्यक्त की थी। लेकिन इन दोनों के अनुमान के विपरीत इस साल यहां बारिश में 14 फीसदी की कमी दर्ज की गई। नए सिस्टम से भारत को उम्मीद है कि यह अनिश्चितता खत्म हो जाएगी।
जलवायु बड़ी चिंता
आईएमडी के डायरेक्टर जनरल लक्ष्मण सिंह राठौर का कहना है कि
हम मौसम संबंधी भविष्यवाणियों को और अधिक सटीक बनाना चाहते हैं। जलवायु एक बड़ी चिंता है और हम और अधिक क्षेत्रों में इसे देखना शुरू करना चाहते हैं तथा मौसम की स्थिति को बेहतर ढंग से समझने के लिए और अधिक रिसर्च व मॉडल विकसित करना चाहते हैं।
वर्तमान में, भारत वातावरण के अध्ययन और अनुमान व्यक्त करने के लिए प्राइवेट एयरक्रॉफ्ट या मौसम गुब्बारों का इस्तेमाल करता है। यह मौसम गुब्बारे हवा की दिशा और स्पीड, तामपान, आर्द्रता, ओस बिंदु तथा अन्य वायुमंडलीय कारकों संबंधी आंकड़ें उपलब्ध कराते हैं।
अनुमान और अर्थव्यवस्था
रिसर्च से पता चलता है कि मौसम का अनुमान कृषि उत्पादन और आय पर असर डालता है। 2013 में कैम्ब्रिज स्थित नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च के मार्क रोजनवेग और क्रिस्टोफर आर उडरी ने भारतीय मानसून अनुमान और उसका किसानों पर प्रभाव का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि भारतीय अनुमान आश्चर्यजनक ढंग से किसानों के निवेश निर्णयों को प्रभावित करते हैं। एक्सिस बैंक की चीफ इकोनॉमिस्ट सौगाता भट्टाचार्या कहती हैं कि
बुआई सीजन से एक या दो महीने पहले अनुमान लगाने की क्षमता कृषि के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। पिछले दो सालों से भारत में लगातार सूखा पड़ा है, जिससे कृषि क्षेत्र पर दबाव है।
देश की कुल जीडीपी में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 16 फीसदी है। वित्त वर्ष 2014 और 2015 में कृषि क्षेत्र की विकास दर औसतन 0.4 फीसदी रही है, जो कि लॉग-टर्म ट्रेंड 3 फीसदी से काफी कम है। वित्त वर्ष 2016 में कृषि क्षेत्र की विकास दर 2.3 फीसदी रही। कम उत्पादन से खाद्य कीमतें और महंगाई बढ़ती है, जिनका सीधा संबंध ब्याज दरों से है। विशेषज्ञों का मानना है कि एक बेहतर अनुमान का मतलब होगा कृषि उत्पादन में 15 फीसदी वृद्धि। यह सटीक अनुमान सरकार को फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने में भी काफी मददगार होंगे।