नई दिल्ली। देश में निकट भविष्य में अधिक नई या निजी रूप से विकसित सिटी (शहर) देखने को नहीं मिलेंगी, क्योंकि ज्यादातर प्रयास मौजूदा शहरी क्षेत्रों को पुनर्गठित करने पर केंद्रित हैं। नीति आयोग के सदस्य विवेक देवरॉय ने यह बात कही है।
देवरॉय ने कहा, मुझे लगता है कि वह विशिष्ट मामला होगा जबकि भारत पूरी तरह निजी तौर पर वित्तपोषित शहर देखेगा। यह होना संभव नहीं है। न ही ऐसा होगा, जबकि पूरी तरह नए शहर देखने को मिलेंगे। उन्होंने कहा कि कुछ होगा, पर बहुत हद तक हम पुराने शहरों का विकास ही देखेंगे।
देवरॉय का मानना है कि 2001 से 2011 के दौरान शहरीकरण में आधी वृद्धि पुराने शहरों में हुई है, जिससे अपनी तरह के संचालन की समस्या पैदा हुई है।उन्होंने कहा कि भारत में शहरीकरण कुछ अव्यवस्थित रहा है। इसकी योजना बेहतर तरीके से नहीं बनाई गई। ज्यादातर जब हम शहरीकरण की प्रकृति, संसाधनों के कम दक्ष प्रयोग की शिकायत करते हैं, तो ये मुख्य रूप से शहरीकरण के खराब प्रबंधन से संबंधित बात होती है।
सार्वजनिक निजी भागीदारी की बात करते हुए उन्होंने कहा, मुझे पीपीपी की अभिव्यक्ति से नफरत है। इसमें बहुत अधिक लोग बहुत कुछ करते हैं जब वे पीपीपी का इस्तेमाल करते हैं। नीति आयोग सार्वजनिक वित्तपोषण में सर्वश्रेष्ठ व्यवहार के जरिए शहरी बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए 21-22 जुलाई को दो दिन की कार्यशाला का आयोजन कर रहा है।
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