नयी दिल्ली। बेरोजगारी के उच्च स्तर पर पहुंचने पर कड़ी आलोचनाओं के बीच शनिवार को आए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के आंकड़ों में सामने आया है कि देश में शहरी बेरोजगारी की दर जनवरी-मार्च 2019 की अवधि में घटकर 9.3 प्रतिशत रही। हालांकि एनएसओ ने इस श्रृंखला में एक साल पहले की इसी अवधि का कोई आंकड़ा जारी नहीं किया था। लेकिन एनएसओ के आवर्ती श्रम बल सर्वेक्षण के शनिवार को जारी त्रैमासिक बुलेटिन में पिछले साल की अप्रैल-जून तिमाही के बाद की तिमाहियों के आंकड़े दिए गए हैं।
इसके अनुसार शहरी बेरोजगारी दर अप्रैल-जून 2018 में 9.9 प्रतिशत, जुलाई-सितंबर 2018 में 9.7 प्रतिशत और अक्टूबर-दिसंबर 2018 में 9.9 प्रतिशत थी। यह त्रैमासिक बुलेटिन पहली बार मई 2019 में जारी किया गया था जो अक्टूबर-दिसंबर 2018 की अवधि के लिए था। ताजा बुलेटिन 2019 की श्रृंखला में दूसरी कड़ी है। आंकड़ों के अनुसार समीक्षावधि में शहरी क्षेत्रों में श्रम योग्य पुरुष वर्ग में बेरोजगारी की दर 8.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जबकि अप्रैल-जून 2018 में यह नौ प्रतिशत थी। जुलाई-सितंबर 2018 में यह दर 8.9 प्रतिशत और अक्टूबर-दिसंबर 2018 में 9.2 प्रतिशत थी।
इसी तरह आलोच्य अवधि में शहरी महिलाओं की बेरोजगारी दर 11.6 प्रतिशत रही, जो अप्रैल-जून 2018 में 12.8 प्रतिशत, जुलाई-सितंबर 2018 में 12.7 प्रतिशत और अक्टूबर-दिसंबर 2018 में यह 12.3 प्रतिशत थी। बेरोजगारी दर के उच्च स्तर पर पहुंचने को लेकर सरकार को बार-बार कड़ी आलोचना का शिकार होना पड़ा है। इस साल मई में सरकारी आंकड़ों में दिखाया गया था कि देश के श्रमबल में बेरोजगारी की दर 2017-18 में 6.1 प्रतिशत थी, जो 45 साल का उच्चतम स्तर था।
शनिवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस साल जनवरी से मार्च के दौरान शहरी क्षेत्रों में श्रमबल की भागीदारी का अनुपात (एलएफपीआर) मामूली सुधरकर 36 प्रतिशत पर पहुंच गया। यह अप्रैल-जून 2018 में 35.9 प्रतिशत था। जुलाई-सितंबर 2018 में एलएफपीआर 36.1 प्रतिशत और अक्टूबर-दिसंबर 2018 में यह 36.3 प्रतिशत थी। इस वर्ष जनवरी-मार्च में शहरों में पुरुषों के मामले में यह अनुपात 56.2 प्रतिशत और महिलाओं के मामले में 15 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया है। एलएफपीआर ऐसे लोगों का अनुपात है जो श्रम बाजार में काम करने योग्य हैं और काम कर रहे हैं या काम की तलाश में हैं।