नई दिल्ली। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि देश सरकारी बैंकों के प्राइवेटाइजेशन (निजीकरण) के लिए तैयार नहीं है और सरकार इन बैंकों को मजबूत बनाने के काम को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है। जेटली ने यह भी कहा कि आईडीबीआई बैंक को छोड़कर बाकी सरकारी बैंकों का सार्वजनिक स्वरूप बना रहेगा। मंत्री ने कहा कि हम कुछ बैंकों को पुनर्गठित करने का प्रयास कर रहे हैं क्योंकि ऐसा न होने पर उन्हें प्रतिस्पर्धा के माहौल में मुश्किल हो सकती है। एक मामले में हम सरकार की हिस्सेदारी घटाकर 49 फीसदी करने के बारे में सोच रहे हैं वह आईडीबीआई बैंक है।
जेटली ने कहा कि पुनर्गठित तरीके से वे संभवत: अपनी मौजूदा स्थिति में बने रहेंगे। उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि भारत को अब भी लगता है कि इन सरकारी बैंकों ने जो भूमिका निभाई है वह बहुत महत्वपूर्ण रही है। यह पूछने पर कि वित्तीय क्षेत्र में निजीकरण की कोई जगह क्यों नहीं है, उन्होंने कहा, सुधारों के एक निश्चित स्तर पर पहुंचने के लिए आपको उस स्तर की सार्वजनिक सोच विकसित करनी होती है। भारत में प्रतिस्पर्धा के बावजूद सामाजिक क्षेत्र के वित्तपोषण के बड़े हिस्से में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की भूमिका अपेक्षाकृत बहुत बड़ी है। जेटली ने कहा कि आम राय अभी ऐसे स्थान पर नहीं पहुंची है, जहां लोग इस क्षेत्र में किसी प्रकार के निजीकरण के बारे में सोच सकें।
उन्होंने कहा, कुछ चुनिंदा सुधार होते हैं, मसलन, हमने एक नीति की घोषणा की है कि बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी घटाकर 52 फीसदी की जा सकती है। वसूल न हो रहे कर्जों के बारे में जेटली ने कहा कि एनपीए (अवरुद्ध ऋण) घटाने के लिए कई पहल की गई है। उन्होंने कहा, एक भी क्षेत्र ऐसा नहीं बचा है जिसे हमने समस्याओं के समाधान के मामले में पीछे छोड़ा हो, यदि आप पूछें कि जीएसटी पारित होने और उसके संभावित क्रियान्वयन के बीच जबकि वह प्रक्रिया चल रही है, मेरी प्राथमिकता क्या होगी तो निश्चित तौर पर यह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का स्वास्थ्य है। जेटली ने यह भी संकेत दिया कि सरकार बजट में घोषित 25,000 करोड़ रुपए की राशि के अलावा इन बैंकों को कुछ और पूंजी प्रदान करने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा, यह बैंकों के पूंजीकरण के लिए बजट में प्रदान की गई सहायता के अतिरिक्त होगी।