नई दिल्ली। भारत को कीमतों पर अंकुश के लिए चालू वित्त वर्ष में एक करोड़ टन तक दाल आयात की जरूरत होगी। उद्योग मंडल एसोचैम के एक रिसर्च में कहा गया है। डिमांड-सप्लाई के अंतर को पाटने और कीमत पर काबू पाने के लिए भारी मात्रा में दलहन आयात की जरूरत है। गैरतलब है कि सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद अरहर दाल की कीमतें 180 रुपए प्रति किलो के आसपास बनी हुई है। 75 फीसदी रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स पर शुरू नहीं हुआ काम, निवेशकों के फंसे 14 लाख करोड़ रुपए
वित्त वर्ष 2014-15 में भारत ने 44 लाख टन दलहन का आयात किया था। रिसर्च में कहा गया है कि बारिश कमजोर रहने की वजह से इस साल दलहन उत्पादन घटकर 1.7 करोड़ टन रहने का अनुमान है। 2014-15 में यह 1.72 करोड़ टन रहा था। इसके अलावा मांग बढ़ने की वजह से कुल 1.01 करोड़ टन दाल आयात की जरूरत होगी। हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर सप्लाई में अड़चनों की वजह से इस मांग-आपूर्ति के अंतर की भरपाई मुश्किल होगी। छापों में 1.20 लाख टन दाल जब्त, कीमतें अभी भी आम आदमी के पहुंच से बाहर
एसोचैम के महासचिव डी एस रावत ने कहा, इस साल हम मुश्किल स्थिति का सामना कर रहे हैं, लेकिन हम इसे जारी नहीं रहने दे सकते। इससे प्रतिकूल पारिस्थितिकी तंत्र बनेगा और नकारात्मक संवाद की स्थिति पैदा होगी। इसके अलावा खाद्य वस्तुआं के दाम बढ़ेंगे जिसका प्रभाव मुख्य मुद्रास्फीति पर दिखेगा।
महाराष्ट्र खरीफ दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक है। उसकी हिस्सेदारी 24.9 फीसदी की है। उसके बाद कर्नाटक में 13.5 फीसदी, राजस्थान में 13.2 फीसदी, मध्य प्रदेश में 10 फीसदी और उत्तर प्रदेश 8.4 फीसदी दाल पैदा होता है। इन पांच राज्यों की देश के कुल खरीफ दलहन उत्पादन में 70 फीसदी हिस्सा बैठता है।