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Covid की दूसरी लहर से भारत में गहरा सकता है आजीविका संकट, ज्‍यां द्रेज ने जताई चिंता

भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोविड महामारी की दूसरी लहर के प्रभाव के बारे में द्रेज ने कहा कि जहां तक कामकाजी लोगों का सवाल है, स्थिति पिछले साल से बहुत अलग नहीं है।

Edited by: India TV Paisa Desk
Updated on: May 12, 2021 20:16 IST
Covid की दूसरी लहर से भारत में गहरा सकता है आजीविका संकट, ज्‍यां द्रेज ने जताई चिंता - India TV Paisa
Photo:PTI

Covid की दूसरी लहर से भारत में गहरा सकता है आजीविका संकट, ज्‍यां द्रेज ने जताई चिंता 

नई दिल्‍ली। दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर के बीच कामकाजी वर्ग के लिए स्थिति इस बार बदतर लग रही है और इससे भारत में आजीविका संकट  गहराने की आशंका है। उन्होंने यह भी कहा कि इस महामारी की रोकथाम के लिए राज्यों के स्तर पर लगाया गया लॉकडाउन देशव्यापी बंद जैसी ही स्थिति है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोविड महामारी की दूसरी लहर के प्रभाव के बारे में द्रेज ने कहा कि जहां तक कामकाजी लोगों का सवाल है, स्थिति पिछले साल से बहुत अलग नहीं है। उन्होंने कहा कि स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन का प्रभाव उतना विनाशकारी संभवत: नहीं होगा जो राष्ट्रीय स्तर पर लगाई गई तालाबंदी का था। लेकिन कुछ मामलों में चीजें इस बार कामकाजी समूह के लिए ज्यादा बदतर है। अर्थशास्त्री ने कहा कि इस बार संक्रमण फैलने की आशंका अधिक व्यापक है और इससे आर्थिक गतिविधियों के पटरी पर आने में समय लगेगा। उन्होंने कहा कि व्यापक स्तर पर टीकाकरण के बावजूद, इस बात की काफी आशंका है कि रुक-रुक कर आने वाला संकट लंबे समय तक बना रहेगा।

द्रेज ने कहा कि पिछले साल से तुलना की जाए तो लोगों की बचत पर प्रतिकूल असर पड़ा है। वे कर्ज में आ गए। जिन लोगों ने पिछली बार संकट से पार पाने के लिए कर्ज लिये, वे इस बार फिर से ऋण लेने की स्थिति में नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि पिछले साल राहत पैकेज दिए गए थे लेकिन आज राहत पैकेज की कोई चर्चा तक नहीं है। अर्थशास्त्री ने कहा कि सरी तरफ, स्थानीय लॉकडाउन जल्दी ही राष्ट्रीय लॉकडाउन में बदल सकता है। वास्तव में जो स्थिति है, वह देशव्यापी तालाबंदी जैसी ही है। उन्होंने कहा कि संक्षेप में अगर कहा जाए तो हम गंभीर आजीविका संकट की ओर बढ़ रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भारत में खासकर सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र की अनदेखी का लंबा इतिहास रहा है और हम आज उसी की कीमत चुका रहे हैं। गुणवत्तापूर्ण जीवन के लिए स्वास्थ्य से ज्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं। इसके बावजूद भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च दशकों से जीडीपी का एक प्रतिशत बना हुआ है। 

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