इन बुनियादी जरूरतों का अभाव इस बात का सबूत है कि भारत के एजुकेशन सिस्टम में संकट है। एशिया की इस तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में शिक्षा की गुणवत्ता किसी भी मामले में घटिया है। यहां शिक्षकों की गुणवत्ता और अनुपस्थिति भी एक बड़ा मुद्दा है। भारतीय स्कूलों को भारत के सुपरपावर बनने के सपने को पूरा करने में मदद करने से पहले स्वयं एक बहुत लंबा रास्ता तय करना होगा। यहां कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां तत्काल सुधार की बहुत ज्यादा जरूरत है:
इलेक्ट्रीसिटी
भारत में बिजली की कमी काफी सालों से बनी हुई है। बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है लेकिन इसकी तुलना में आपूर्ति अपर्याप्त है। बहुत से इलाके अभी भी पावर ग्रिड से नहीं जुड़ पाए हैं। सरकारी सर्वे में कहा गया है कि 40 फीसदी भारतीय स्कूलों में बिजली की आपूर्ति पर्याप्त नहीं है।
इसका मतलब है कि यहां टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना कितना मुश्किल है। कुछ इलाकों में, छात्रों को भीषण गर्मी और आर्द्र परिस्थितियों में पढ़ाई करना पड़ रही है, क्योंकि बिजली न होने की वजह से यहां पंखे भी नहीं चलते हैं। स्कूल छोड़ने की उच्च दर में इसका भी काफी योगदान है। एसोचैम और पीडब्ल्यूसी की एक संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2021-22 तक भारत में बिजली की कमी बढ़कर 5.6 फीसदी होने का अनुमान है, जो कि वित्त वर्ष 2015-16 में 2.2 फीसदी है।
कम्प्यूटर्स भारत को इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी हब के रूप में जाना जाता है, लेकिन वास्तव में, देश के 26.42 फीसदी स्कूलों के पास ही कम्प्यूटर्स हैं। यह हालत तब है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देने की बात हर जगह कर रहे हैं। इसके अलावा कम्प्यूटर्स के अभाव का सीधा मतलब यह है कि शिक्षक नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल नहीं कर सकते और वे पुस्तकों पर ही पूरी तरह से निर्भर हैं।
लाइब्रेरी
केवल 82 फीसदी भारतीय स्कूलों के पास लाइब्रेरी है और केवल 16.5 फीसदी सेकेंडरी और हायर-सेकेंडरी स्कूल के पास लाइब्रेरियन हैं। सरकार की जिम्मेदारी केवल अपने नागरिकों को शिक्षा का अधिकार देना ही नहीं है, बल्कि इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि नागरिकों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा का अधिकार दिया जाए।