नई दिल्ली। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी केयर रेटिंग्स ने बृहस्पतिवार को चालू वित्त वर्ष में देश की जीडीपी में 6.4 प्रतिशत गिरावट का अनुमान जताया है। एजेंसी ने कहा है कि कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिये लगाये गये ‘लॉकडाउन’ की पाबंदियों में अभी पूरी तरह से ढील नहीं दी गयी है। इससे पहले, एजेंसी ने मई में 2020-21 में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में 1.5 से 1.6 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान जताया था। केयर रेटिंग्स ने कहा कि देश में जुलाई में भी ‘लॉकडाउन’ जारी है। कई प्रकार की सेवाओं को शुरू करने के साथ-साथ लोगों की आवाजाही पर अभी पाबंदियां बनी हुई है। फिलहाल स्थिति के तीसरी तिमाही के अंत में सामान्य होने की उम्मीद है, हालांकि रिकवरी के चौथी तिमाही तक खिंचने की संभावना भी बनी हुई है।
रेटिंग एजेंसी ने एक रिपोर्ट में कहा, ‘‘इन परिस्थितियों को देखते हुए हमारा अनुमान है कि जीडीपी में 2020-21 में 6.4 प्रतिशत और जीवीए में 6.1 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है।’’ रिपोर्ट के अनुसार वास्तविक जीडीपी में तीव्र गिरावट का यह भी मतलब है कि बाजार मूल्य पर आधारित सकल घरेलू उत्पाद भी नीचे आएगा। यहां मुद्रास्फीति के 5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। इससे केंद्र सरकार का अनुमानित राजकोषीय घाटा प्रभावित होगा और वो चालू वित्त वर्ष में 8 प्रतिशत रह सकता है। उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2019-20 में देश की आर्थिक वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत रही जो करीब एक दशक का न्यूनतम स्तर है। रिपोर्ट के अनुसार सकारात्मक वृद्धि केवल कृषि और सरकारी क्षेत्र से आएगी। रेटिंग एजेंसी ने मई में जीडीपी में 1.5 से 1.6 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान जताया था। यह इस मान्यता पर आधारित था कि ‘लॉकडाउन’ माह के अंत तक समाप्त हो जाएगा और पुनरूद्धार की प्रक्रिया धीरे-धीरे शुरू होगी। इसके साथ दूसरी छमाही सामान्य होगी। रिपोर्ट के अनुसार 2020-21 का जीडीपी अनुमान उभरती स्थिति पर निर्भर करेगा।
एजेंसी ने अपने अनुमान में यह माना है कि अर्थव्यवस्था का दो तिहाई क्षेत्र तीसरी तिमाही तक मोटे तौर पर 50 से 70 प्रतिशत पर काम करेगा और शेष इस साल इस स्थिति पर भी संभवत: नहीं पहुंचेगे। इसमें कहा गया है कि होटल, पर्यटन, मनोरंजन, यात्रा जैसे क्षेत्रों को कामकाज शुरू करने और सामान्य स्तर के करीब पहुंचने में अपेक्षाकृत लंबा समय लगेगा। रिपोर्ट के अनुसार लोगों की आवाजाही पर पाबंदी का मतलब है कि वस्तु एवं सेवाओं की मांग में गिरावट। रोजगार में कटौती और वेतन में कमी से त्योहारों के दौरान भी खर्च पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका है।