नई दिल्ली। एक अध्ययन के अनुसार भारत का उदय जहां एक तरफ दुनिया के सबसे बड़े दूसरे बाजार के तौर पर हुआ है, वहीं वह विश्व का पांचवा सबसे बड़ा ई-कचरा उत्पादक देश भी है। यहां हर साल लगभग साढ़े 18 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है। एसोचैम और केपीएमजी के एक संयुक्त अध्ययन में सामने आया है कि पूरे ई-कचरा में अकेले दूससंचार उपकरणों की हिस्सेदारी 12 फीसदी है।
इसमें कहा गया है कि हाल के दिनों में ई-कचरा के स्तर में बढ़ोत्तरी होना भारत के लिए गहरी चिंता का विषय है। हर साल यहां 100 करोड़ से ज्यादा मोबाइल फोनों का प्रयोग किया जाता है, जिनमें से करीब 25 फीसदी का अंत ई-कचरा के रूप में होता है। अध्ययन में कहा गया है, निश्चित रूप से भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल बाजार बनकर उभरा है, जहां 1.03 अरब से ज्यादा मोबाइल उपभोक्ता हैं, लेकिन यह दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा ई-कचरा उत्पादक भी है। पर्यावरण मंत्रालय ने ई-कचरा प्रबंधन नियमावली-2016 को अधिसूचित किया है, जिसमें पहली बार मोबाइल विनिर्माताओं की जवावदेही का विस्तार (ईपीआर) कर उन्हें इसके तहत लाया गया है।
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इस नियमावली में पहले दो सालों ईपीआर के तहत उत्पादित कचरे के 30 फीसदी संग्रहण का लक्ष्य है, जिसे आगे बढ़ाते हुए सातवें साल तक 70 फीसदी करना है। नियमों का पालन नहीं करने पर कड़े आर्थिक दंड का प्रावधान भी इसमें किया गया है। हालांकि इस अध्ययन में कहा गया है कि भारत में असंगठित क्षेत्र ई-कचरा उत्पादन के 95 फीसदी को संभालता है। इसके अलावा भारत में दूरसंचार की व्यापक पहुंच के चलते मोबाइल उपकरण बनाने वाली कंपनियों के लिए व्यावाहारिक रूप से पहले साल के ई-कचरा संग्रहण लक्ष्य को पाना बहुत मुश्किल और खर्चीला होगा। इसमें कहा गया है कि ई-कचरा संग्रहण के इस लक्ष्य को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाना चाहिए।
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