नई दिल्ली। एक सर्वे में शामिल कुल कंपनियों में से 80 फीसदी ने कहा है कि 2015-16 में वह भ्रष्टाचार से जुड़े धोखाधड़ी का शिकार हुई हैं। 2013-14 में ऐसी कंपनियों की संख्या 69 फीसदी थी। जोखिम कम करने के लिए सलाह देने वाली कंपनी क्रोल (Kroll) द्वारा किए गए सालाना सर्वे दि ग्लोबल फ्रॉड रिपोर्ट 2015-16 में भारत को सभी देशों की लिस्ट में टॉप-3 में रखा गया है। कोलंबिया (83 फीसदी) और सब-सहारन अफ्रीका (84 फीसदी) भारत से आगे हैं। इस सर्वे में पाया गया है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धोखाधड़ी के मामलों में वृद्धि हुई है। भारतीय कंपनियों में सुरक्षात्मक उपायों की कमी और कमजोर कानूनी तंत्र की वजह से 92 फीसदी लोगों का कहना है कि धोखाधड़ी की संभावना काफी बढ़ गई है।
भ्रष्टाचार से जुड़े धोखाधड़ी के मामले सबसे ज्यादा
भारत में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार से जुड़े धोखाधड़ी के मामले सामने आए हैं। एक तिहाई लोगों का कहना है कि इसकी वजह से उन्हें नुकसान हुआ है। औसत आधार पर, दुनियाभर में किए गए इस सर्वे में पाया गया कि केवल 11 फीसदी कंपनियों ने यह माना कि भ्रष्टाचार और रिश्वत रेवेन्यू घाटे का एक स्रोत है।
खरीद धोखाधड़ी
भारत में राजस्व के नुकसान का दूसरा सबसे बड़ा कारण वेंडर, सप्लायर या खरीद धोखाधड़ी है, जो 23 फीसदी कंपनियों को प्रभावित करता है। भारत में यह वैश्विक औसत 17 फीसदी की तुलना में कही ज्यादा है। 2013-14 के सर्वे में कंपनियों के धोखाधड़ी संबंधी राजस्व नुकसान में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी भौतिक संपत्ति या स्टॉक की चोरी (33 फीसदी) थी। सूचना की चोरी, नुकसान या हमले तथा भ्रष्टाचार व रिश्वत का हिस्सा 24 फीसदी था।
उच्च टर्नओवर
ताजा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिछले कुछ सालों में भारतीय कंपनियों में धोखाधड़ी के प्रमुख स्रोत में भी बदलाव आया है। पिछले सर्वे में आईटी जटिलता को धोखाधड़ी का सबसे बड़ा जरिया बताया गया था, वहीं 2015-16 की रिपोर्ट में धोखाधड़ी के नए ड्राइवर उच्च कर्मचारी टर्नओवर और कम वेतन है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कंपनियां धोखाधड़ी से बचने के लिए अपना स्तर सुधारने के लिए खर्च करने की इच्छुक हैं, लेकिन इस धन का उपयोग सही ढंग से नहीं किया जा रहा है। 59 फीसदी कंपनियों ने कहा कि इस तरह के कम से कम एक अपराध में जूनियर लेवल के कर्मचारी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
कानूनी अड़चन
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में एक बार धोखाधड़ी का पता लग गया तो सबसे बड़ी और जटिल समस्या अपर्याप्त निवारक उपाय की है। इसके अलावा भारत में कानूनी तंत्र इतना तेज नहीं है कि जब कंपनी कोर्ट में जाए तो उसे तुरंत फैसला मिले। क्रोल की इंडिया प्रमुख रेशमी खुराना कहती हैं कि सबसे पहले भारत में धोखाधड़ी के सबूत को पेश करना जरूरी होता है। दूसरा कोर्ट में मामले को निपटाने में सालों का वक्त लगता है, इससे निवेश का मूल्य बहुत अधिक कम हो सकता है। यही वो कारक हैं जिनकी वजह से पीई (प्राइवेट इक्विटी) इन्वेस्टर्स अक्सर विवाद की स्थिति में कोर्ट में नहीं जाना चाहते हैं।