मुंबई। दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं मंदी का संकेत दे रही हैं और इसका अगला चरण वैश्विक मंदी होगा। अगर मॉर्गन स्टेनली की माने तो यह मंदी अभी से अगले 9 महीनों में ही आ जाएगी।
दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता व्यापारिक तनाव दुनिया को मंदी की ओर ढकेलने वाला मुख्य कारक है। मंदी के अन्य विश्वसनीय संकेतक भी सामने आ रहे हैं, जिसमें बांड यील्ड का उल्टा होना है। मंदी से पहले भी बांड यील्ड के ग्राफ का कर्व उलटा हुआ था और यह अब लगभग वैसा ही हो रहा है जैसा कि 2008 के वित्तीय संकटों से पहले देखने को मिला था।
मॉर्गन स्टेनली का मानना है कि अगर अमेरिका के जरिये व्यापार युद्ध फिर से भड़कता है और वह चीन से आयातित सभी सामानों पर शुल्क बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर देता है, तो दुनिया में तीन तिमाहियों में ही मंदी आ जाएगी।
भारत में हालांकि मंदी के उतने लक्षण नहीं दिख रहे हैं, लेकिन वाहन उद्योग जैसे कुछ क्षेत्र खतरनाक रूप से मंदी के करीब हैं। भारत की अर्थव्यवस्था में पिछली तीन तिमाहियों में गिरावट ही रही है और विकास का पूर्वानुमान भी नहीं बढ़ रहा है। औद्योगिक उत्पादन और कोर इंफ्रास्ट्रक्चर दोनों क्षेत्रों में गिरावट देखी गई है।
ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था और अन्य यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं पर मंदी का एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है। ब्रेक्जिट के कारण राजनीतिक अनिश्चितता की वजह से वहां दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद सिकुड़ गया है, जिससे आसन्न मंदी की आशंका बढ़ गई है।
वैश्विक मंदी के बीच, वैश्विक केंद्रीय बैंक कार्रवाई में जुट गए हैं। भारत ने बेंचमार्क नीतिगत दरों में 35 आधार अंकों की कटौती की, न्यूजीलैंड ने 50 आधार अंकों और थाईलैंड ने भी आश्चर्यजनक रूप से 25 आधार अंकों की कटौती की है। हालांकि, भारत में मंदी का खतरा आसन्न नहीं है, लेकिन सरकार और नीति निर्माता इसकी अनदेखी नहीं कर सकते और उन्हें जरूरी कदम उठाने होंगे।