नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पिछले पांच सालों के दौरान सरकार को लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए दिए हैं, जो केंद्रीय बैंक की आय का लगभग 75 प्रतिशत है।
पिछले साल सरकार के वित्त लेखा का विश्लेषण करने के दौरान नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने आरबीआई की आय, खर्च और सरकार को स्थानांतरित किए गए सरप्लस का भी आकलन किया था। इसमें यह पाया गया कि 2013-14 और 2017-18 के बीच केंद्रीय बैंक की कुल आय 3.3 लाख करोड़ रुपए रही, जिसमें से 2.48 लाख करोड़ रुपए बैंक ने सरकार को सरप्लस के रूप में ट्रांसफर किए।
आरबीआई ने सबसे ज्यादा भुगतान 2015-16 में किया, तब यह आरबीआई की आय का 83 प्रतिशत था। आरबीआई का रिजर्व रीढ की हड्डी है, जबकि सरकार पेआउट बढ़ाने की इच्छुक है। हाल के वर्षों में विवाद की वजह यह है कि आर्थिक सर्वेक्षण में यह बताया गया है कि आरबीआई के पास अन्य देशों के केंद्रीय बैंकों की तुलना में बहुत अधिक रिजर्व है।
पिछले कुछ वर्षों में, आरबीआई सरकार को हर साल 65,000 करोड़ रुपए का सरप्लस ट्रांसफर करता रहा है, 2017 में इसमें कमी आई, जब इसका खर्च दोगुना बढ़कर 31,000 करोड़ रुपए हो गया। 2016-17 तक आरबीआई का खर्च 15,000 करोड़ रुपए से कम था लेकिन नोटबंदी की वजह से नए करेंसी नोटों को छापने की ऊंची लागत की वजह से इसका खर्च काफी बढ़ गया।
पिछले महीने अपने एक भाषण में आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने सरकार द्वारा उच्च लाभांष की मांग करने की आलोचना की थी और अर्जेंटीना का उदाहरण दिया था, जहां आठ साल पहले ऐसा ही कदम उठाया गया था। उन्होंने कहा था कि केंद्रीय बैंक की स्वायत्ता से समझौता नहीं किया जाना चाहिए। आरबीआई के पास कितना रिजर्व रहना चाहिए यह आरबीआई बोर्ड बैठक का एक अहम मु्द्दा था और इस पर निर्णय करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति इस पर विचार करेगी।