नई दिल्ली। भारत के मित्र पड़ोसी देश नेपाल की वजह से भारत के किसान और तेल उद्योग मुश्किल में है। दि सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने अपनी इस मुश्किल का हल निकालने के लिए सेंट्रल बोर्ड ऑफ इनडायरेक्ट टैक्सेस एंड कस्टम के चेयरमैन प्रणब के. दास को पत्र लिखा है।
पत्र में कहा गया है कि 9 नवंबर, 2011 को अधिसूचना क्रमांक 99/2011 के जरिये 5 अल्प विकसित सार्क देशों को भारत में बिना सीमा शुल्क के आयात की अनुमति प्रदान की गई है। इस छूट का लाभ उठाते हुए, नेपाल से शून्य शुल्क पर पाम और सोयाबीन तेल का आयात बड़ी मात्रा में शुरू किया गया। नेपाल में सोयाबीन का उत्पादन नहीं होता है और इसके पास आयातित सोयाबीन को क्रशिंग के लिए भी बहुत कम क्षमता है। नेपाल में पाम तेल का भी उत्पादन नहीं होता है। नेपाल से आयात होने वाला पाम ऑयल इंडोनेशिया और मलेशिया में पैदा किया हुआ है, जबकि सोयाबीन तेल दक्षिण अमेरिका मूल का है। शून्य सीमा शुल्क का लाभ उठाने के लिए नेपाल के रास्ते भारत में सोयाबीन तेल और पाम ऑयल का बड़ी मात्रा में आयात हो रहा है, जो पूरी तरह से नियमों का उल्लंघन है। इससे सीमा शुल्क की भी चोरी की जा रही है।
पत्र में कहा गया है कि रिफाइंड पामोलिन पर वर्तमान में टैरिफ वैल्यू 573 डॉलर प्रति टन है, जिससे इस पर प्रति टन 19968 रुपए की कस्टम ड्यूटी की चोरी हो रही है। इसी प्रकार, रिफाइंड सोयाबीन ऑयल पर ड्यूटी 25,195 रुपए प्रति टन है। सरकार को इस तरह के आयात से भारी नुकसान हो रहा है, क्योंकि सीमा शुल्क की चोरी बहुत बड़ी है।
दि सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने अपने पत्र में लिखा है कि यह आयातित सोयाबीन तेल स्वदेशी सोयाबीन ऑयल की तुलना में 5000 रुपए प्रति टन सस्ता बिक रहा है, जिसकी वजह से घरेलू उद्योग को वित्तीय घाटा हो रहा है।
पत्र में कहा गया है कि किसानों को उचित मूल्य सुनिश्चित करने और उन्हें अधिक तिलहन का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए खाद्य तेलों पर आयात शुल्क को बढ़ाया गया था, साथ ही इससे खाद्य तेलों के आयात पर हमारी निर्भरता भी कम होती। हमें डर है कि शून्य शुल्क पर बड़ी मात्रा में खाद्य तेल का यह आयात किसानों को मिलने वाले लाभ को पूरी तरह से खत्म कर देगा और उद्योग पर भी प्रतिकूल असर डालेगा। इसके अलावा सरकार को राजस्व की हानि भी होगी।
एसोसिएशन ने नेपाल में ही पैदा होने वाले खाद्य तेल के आयात को अनुमति देने और रूल्स ऑफ ओरिजिन का कढ़ाई से पालन करने का अनुरोध किया है। चूंकि इस तरह के आयात से किसानों और उद्योग को भारी नुकसान हो रहा हैं इसलिए इस पर त्वरित कार्रवाई की जानी चाहिए।