नई दिल्ली। इतिहास में ऐसे दौर की कोई कमी नहीं रही है, जब लूट, फिरौती और जबरन कब्जा आय के वाजिब तरीके गिने जाते थे। हजारों सालों से इन तरीकों से अरबों खरबों की दौलत एक हाथ से दूसरे हाथ में पहुंचती रही है। आज हम आपको बता रहे हैं दुनिया की सबसे बड़ी फिरौती के बारे में, जिसमें एक बार कीमत वसूलनी शुरू की गई तो एक पूरी सभ्यता का ही अंत कर दिया। वहीं इस लालच ने दुनिया भर की इकनॉमी को कई कड़वे और अहम सबक भी दिए।
क्यों है ये फिरौती दुनिया की सबसे बड़ी फिरौती
- एक जिंदगी को बख्शने के लिए अपराधियों को जितना सोना चांदी दिया गया उसकी कीमत फिलहाल 150 करोड़ डॉलर यानी करीब 11 हजार करोड़ रुपए आंका गई है। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में इसे सबसे बड़ी फिरौती माना गया है।
- फिरौती की लिस्ट यहीं नहीं रुकी। पैसा चुकाने के बाद भी फिरौती देने वाले की जिंदगी, एक खास कैश लैस इकनॉमिक सिस्टम, एक पूरी सभ्यता और साथ ही अंत में खुद फिरौती लेने वाले की जिंदगी भी इसकी भेंट चढ़ गई।
- वहीं फिरौती से मिली रकम से चेन रिएक्शन की शुरुआत हुई। लूटने की परंपरा आगे बढ़ने से मिली अथाह दौलत ने दुनिया की बड़ी इकनॉमी को करंसी डीवैल्यूएशन से लेकर इन्फ्लेशन तक से सामना करा दिया।
आगे जानिए किस शख्स ने दी है अब तक सबसे बड़ी फिरौती
- दुनिया की सबसे बड़ी फिरौती इंका सभ्यता के आखिरी राजा अताहुआल्पा ने स्पेन के फ्रांसिस्को पिजारो को दी थी
- साल 1533 में पिजारो ने एक लड़ाई के बाद इस राजा को कैद कर लिया था, अपनी जान बख्शने के लिए राजा ने कैदखाने के कमरे को अपनी ऊंचाई के बराबर सोने से भरने का ऑफर दिया।
- फाइनेंशियल हिस्टोरियन नायल फर्गसन के मुताबिक राजा ने पिजारो को अपनी रिहाई के लिए 13420 पौंड यानि करीब 6100 किलो 22 कैरेट गोल्ड और करीब 12 हजार किलो शुद्ध चांदी दी थी। इसके साथ कई बहमूल्य चीजें भी ऑफर की गई।
- पिजारो ने फिरौती वसूलने के बाद भी राजा को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद स्पेन ने इस इलाके से 45 हजार टन चांदी और बटोरी।
जानिए इन्का सभ्यता की कैश लैस इकनॉमी जो इस फिरौती की भेंट चढ़ी
- इन्का सभ्यता आदर्श कैशलैस व्यवस्था थी जहां पैसों का कोई चलन नहीं था, यहां तक कोई मार्केट प्लेस, ट्रेडर या किसी भी तरह का टैक्स नहीं था।
- सभी कमोडिटी पर सरकार का नियंत्रण होता था, सरकार आम लोगों को घर खर्च के लिए खाना, कपड़ा और कच्चा माल मुहैया कराती थी।
- इन्का लोगों पर टैक्स लगता था लेकिन वो पैसों में न होकर मेहनत के रूप में होता था। काम ही करंसी का यूनिट होता था।
- इन्का सभ्यता में सोने को सूरज का पसीना और चांदी को चांद के आंसू माना जाता था। इसलिए इनकी कीमत नहीं लगाई जाती थी। ये सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों में सजाने के काम आते थे।
- सभ्यता में सोना इतना ज्यादा था कि अल डोराडो का मिथक पूरी दुनिया में फैल गया। माना जाता था कि ये वो शहर है जहां के घर सोने की ईंटों से बने हैं।
आगे जानिए इस फिरौती के बाद कैसे बदली दुनिया की इकनॉमी
- इस फिरौती के जरिए स्पेन के सैनिकों को यकीन हो गया कि इन इलाकों में सोने और चांदी के भंडार हैं।
- माना जाता है कि साम्राज्य पर कब्जा करने के लिए ही फिरौती लेकर भी राजा को मार दिया गया।
- इस दौरान यूरोप में स्पेन धर्मयुद्ध में उलझा था, राजा को दौलत की जरूरत थी। वहीं यूरोप में चांदी के भंडार लगभग खत्म हो चुके थे। सोना और चांदी की तलाश में राजा दुनिया भर में अपने अभियान भेज रहे थे। पिजारो इनमें से एक था।
- इस बदनाम फिरौती के 11 साल बाद स्पेनियों को सेरों रिको का पहाड़ मिला जहां चांदी की बड़ा खजाना मौजूद था। स्पेनियो ने यहां से 45 हजार टन शुद्ध चांदी निकाली।
- दक्षिण अमेरिका से स्पेन आ रही चांदी की लगातार सप्लाई से कारोबार में सिक्कों के भुगतान पर भरोसा बढ़ा। इससे पहले चांदी की सप्लाई गिरने से सिक्कों में चांदी की मात्रा घटने लगती थी और सिक्कों के भुगतान को लेकर अविश्वास बढ़ने लगता था।
- वहीं इसी फ्लो की मदद से स्पेन की करंसी पहली ग्लोबल करंसी बन सकी।
- ट्रेड के लिए चांदी और सोने के सिक्के बिना किसी शिकायत हर जगह स्वीकार किए जाते थे। ऐसे में ग्लोबल ट्रेड में यूरोपीय देश को स्थापित होने में मदद मिली।
आगे जानिए इकनॉमी को मिले क्या कड़वे सबक
- नायल फर्गसन के मुताबिक स्पेनी लोग एक बात नहीं समझ सके कि चांदी बहुमूल्य नही है। वो दुर्लभ है इसलिए बहुमूल्य है।
- चांदी की सप्लाई बढ़ने के साथ पहली बार अर्थव्यवस्थाओं को महंगाई और डीवैल्यूएशन से सीधा सामना हुआ।
- चांदी की सप्लाई बढ़ने से सिक्कों की खरीद क्षमता में तेज गिरावट देखने को मिली। साल 1492 में सोने और चांदी की कीमतों का अनुपात 1 के मुकाबले 10 था। यानि एक सोने के सिक्के की कीमत 10 चांदी के सिक्कों के बराबर थी। हालांकि 16 वीं शताब्दी में ये रेश्यो एक के मुकाबले 15 से ऊपर निकल गया।
- वहीं चांदी की अंधाधुंध सप्लाई से महंगाई में तेज बढ़त देखने को मिली। फिरौती वसूलने के 150 साल में ही यूरोपीय देशों में जीवनयापन की लागत 7 गुना बढ गई। खास बात ये थी इससे पहले के 3 सौ साल में खाद्य कीमतें लगभग स्थिर रही थीं।