कीट एवं बीमारी से हुए सोयाबीन फसल के नुकसान से बचाव के लिए किसानों को दि सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से सलाह दी गई है। विगत सप्ताह में हुई भारी बारिश के बाद विभिन्न क्षेत्रों में कुछ फसल अचानक से पीली पड़ गयी है एवं सूख भी गयी है। इन बीमारियों एवं कीड़ों से फसल के बचान के लिए किसान भाइयों को दि सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक डी.एन. पाठक ने मध्यम एवं देरी से पकने वाली सोयाबीन प्रजातियों में या जहां कीट व रोग प्रारंभिक अवस्था में हैं वहीं के लिए कुछ उपाय बताए हैं।
डीएन पाठक ने तना मक्खी एवं गर्डल बीटल के नियंत्रण के लिए कृषकों को सलाह दी है कि नियंत्रण के लिए बीटासायफ्लुथ्रिन प्लस इमिडाक्लोप्रिड 350 मिली. या थायमिथोक्सम प्लस लेम्बड़ा सायहेलोथ्रिन 125 मिली/हेक्टेयर का छिड़काव करें। जहां केवल सेमीलूपर झल्लियों का प्रकोप हो रहा है वहां लेम्बड़ा सायहेलोथ्रिन 409 एसटी (300 मिली/हेक्टेयर) या इन्डोक्साकार्ब 15.8 ई.सी. (333 मिली/हेक्टेयर) या प्लूबेन्डियामाईड 39.35 एससी (150 मिली/हेक्टेयर) या फ्लूबेन्डियामाईड 20 डब्ल्यू.जी. (275 मिली/हेक्टेयर) का छिड़काव करें।
एन्थ्रेकनोज एवं राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाईट नामक रोगों के नियंत्रण के लिए टेबूकोनाझोल (625 मिली/हेक्टेयर) अथवा टेबूकोनाझोल प्लस सल्फर (1 किग्रा/हेक्टेयर) अथवा पायरोक्लोस्ट्रोबीन 20 डब्ल्यूजी (500 ग्राम/हेक्टेयर) अथवा हेक्जाकोनाझोल 5 ईसी (800 मिली/हेक्टेयर) से छिड़काव करें। वहीं जो फसल पूरी तरह से नष्ट हो चुकी है वहां पर इन दवाइयों का उपयोग न करने की सलाह दी गई है।
चूकी सोयाबीन की फसल अब लगभग 70 दिन की और घनी हो चुकी है अत: रसायनों का अपेक्षित प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए 500 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर का प्रयोग अवश्य करें। जिन क्षेत्रों में अभी भी जल भराव की स्थिति है, सलाह है कि शीघ्रातिशीघ्र अतिरिक्त जल निकासी की समुचित व्यवस्था सुनिश्चिक करें।