ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है कि ऐसी क्या रणनीति है, जो पतंजलि को इतनी तेजी से आगे बढ़ने में मदद कर रही है? इसका जवाब कई हिस्सों में है। पहला क्वालिटी प्रोडक्ट्स, दूसरा किफायती दाम और तीसरा आक्रामक वितरण। इस कामयाबी के पीछे इन सब के बाद एक और महत्वपूर्ण चीज है वो सिंगल ब्रांड स्ट्रैट्जी।
सिंगल ब्रांड स्ट्रैट्जी
कोलगेट कंपनी अपने नाम, पाल्मोलिव, अजाक्स और अन्य के नाम से ब्रांड बेचती है। प्रोक्टर एंड गैंबल भी जिलेट, टाइड, पैम्पर्स, एरियल, ड्यूरासेल और अन्य कई नाम से प्रोडक्ट्स की बिक्री करती है। यूनीलिवर ने मल्टी-ब्रांड स्ट्रैट्जी अपनाई है और वह सर्फ, डव, लिप्टन और लक्स, पॉन्ड्स, सर्फ एक्सेल, लिप्टन येलो लेबल, लक्स सुप्रीम और पॉन्ड्स ड्रीमफ्लावर और ऐसे ही अलग-अलग नामों से उत्पादों की बिक्री करती है। लेकिन यदि हम पतंजलि के पूरी रेंज को देखें तो, चाहे वह टूथपेस्ट हो या चावल, नूडल्स हो या च्वनप्राश, यह सभी केवल एक ही ब्रांड पतंजलि के नाम से बिकते हैं।
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पारंपरिक ब्रांड थ्योरी पड़ी फीकी
पारंपरिक मार्केटिंग सिद्धांत के तहत पहले यह जरूरी होता है कि आप ब्रांड का एक पोर्टफोलियो बनाएं और उसे बड़ा करें। प्रत्येक ब्रांड को अलग उपभोक्ता और उसकी अलग जरूरत के हिसाब से तैयार किया जाए। शायद बाबा रामदेव इस सिद्धांत को न मानने वाले अकेले नहीं हैं। रिचर्ड ब्रानसन ने सबसे पहले यह किया। उन्होंने कोला से लेकर हवाई जहाज, ट्रेन, मोबाइल सर्विस और कॉमिक्स सभी में अपने वर्जिन ब्रांड को जोड़ा। इसके पीछे एक सीधी सोच है- यदि आपने मेरे ब्रांड के बारे में सुना है और आप उसे पसंद करते हैं- तब मैं जो भी पेश करूंगा उसे खरीदने में आप सहज होंगे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि प्रोडक्ट श्रेणी कितनी भिन्न है।
मॉर्डन टेक्नोलॉजी ब्रांड थ्योरी
टेक्नोलॉजी ब्रांड जैसे गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, याहू और अन्य इस थ्योरी को अपनाते हैं। नामकरण का सूत्रा यहां बहुत ही सरल है: यूनिक ब्रांड + जेनेरिक सब-ब्रांड/ कैटेगरी नेम = प्रोडक्ट ब्रांड नेम। गूगल और मैप्स से बना गूगल मैप्स। इसी प्रकार गूगल सर्च और हवा में गुब्बारा बना गूगल लून। माइक्रोसॉफ्ट एक उपसर्ग है, जो माउस और कीबोर्ड से लेकर विंडोज सर्वर सभी के साथ लगा हुआ है। एप्पल का जेनेरिक सब-ब्रांड इसके सभी कैटेगरी जैसे एप्पल आईपॉड, एप्पल आईफोन, एप्पल आईट्यूंस, एप्पल आईपैड आदि के साथ जुड़ा हुआ है। इसलिए बिजनेस वर्ल्ड की इस नई सोच से अलग बाबा रामदेव ने कुछ भी अलग नहीं किया है।
सिंगल-ब्रांड स्ट्रैट्जी के हैं स्पष्ट लाभ
कुछ साल पहले तक, नेस्ले 190 देशों में 8,000 ब्रांड बेचती थी। यूनीलिवर के पास 150 देशों में 1600 ब्रांड और पीएंडजी के पास 160 देशों में 250 ब्रांड थे। पीएंडजी ने सोचा कि 100 ब्रांड बहुत ज्यादा हैं और उसने 2014 में ब्रांड की संख्या घटाकर 150 करने की घोषणा की। वर्तमान में बहुत ज्यादा ब्रांड और बहुत ज्यादा संचार वाली दुनिया में 149 ब्रांड भी बहुत ज्यादा हैं। प्रत्येक ब्रांड को अलग से मार्केटिंग और प्रमोशनल बजट की जरूरत होती है, हर ब्रांड के लिए उसकी अपनी मैनेजमेंट टीम होती है। लेकिन इसे घटाकर एक ब्रांड बनाने से जीवन बहुत ही आसान हो जाता है। आप गूगल मैप्स को आजमाने के लिए तैयार हैं, क्योंकि आप गूगल सर्च के आदि हैं। आप एप्पल आईफोन का बेशर्बी से इंतजार करते हैं क्योंकि आप अपने एप्पल आईमैक या एप्पल आईपैड से प्यार करते हैं।
पतंजलि को कैसे फायदा हुआ
एक सेल्समैन को रिटेलर के पास जाकर यह कहना कि लक्स और सनसिल्क या डव तथ लाइफबॉय और क्लोजअप का स्टॉक बताओ, जबकि इसकी तुलना में केवल इतना कहना कि पतंजलि का स्टॉक बताओ बहुत आसान होता है। ऐसे में केवल एक आदमी ही नकम और चावल और शैम्पू तथा साबुन का ऑर्डर लेता है और यह काम केवल एक आदमी से हो जाता है, इसके लिए पांच आदमियों की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसे में वितरण भी आसान होता है और जीत की यही मूल वजह भी है। उपभोक्ता भी इसे आसानी से याद रखता है। एक ग्राहक दुकान पर जाता है और कहता है कि अरे यह पतंजलि का प्रोडक्ट है। मैंने इसके चावल उपयोग किए हैं। चलो इसका शैम्पू भी लगाकर देखते हैं। सभी प्रोडक्ट्स पर कड़ी नजर रखने की जरूरत होती है लेकिन वर्तमान में यह कोई मुश्किल काम नहीं है।
आपके लिए कौन सी स्ट्रैट्जी होगी बेहतर
कुछ ही ब्रांड बेहतर होते हैं। आदर्श तौर पर, केवल एक ब्रांड। आप सब-ब्रांड बनाने की कोशिश न करें। इस बहुत ज्यादा संचारी दुनिया में एक ब्रांड को अच्छे से स्थापित करना बहुत मेहनत का काम है। यदि आपके पास पैसा और समय है, तभी आप दूसरे या तीसरे ब्रांड को खड़ा करने के बारे में सोच सकते हैं।
Source: Inc42