वर्तमान में, भारत में 4200 स्टार्टअप्स हैं और यह दूनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप ईकोसिस्टम है, यहां सालाना आधार पर स्टार्टअप्स की ग्रोथ 40 फीसदी है। भारत में जीएसटी कई मायनों में स्टार्टअप्स इंडस्ट्री को और अधिक बूस्ट करेगा।
सरल टैक्सेशन
अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग टैक्सेशन के नियमों का पालन करना टैक्सेशन प्रक्रिया को और अधिक जटिल और भारी बना देता है। जीएसटी सभी इनडायरेक्ट टैक्स को अपने अंदर समाहित कर इसे आसान बना देगा और इसमें सभी को केवल एक टैक्स ही देना होगा। ऐसे में टैक्स की गणना करना आसान होगा, समय की बचत होगी और स्टार्टअप एंट्रप्रेन्योर अपना समय और एनर्जी टैक्स पेपरवर्क के बजाये अपने कारोबार पर ज्यादा लगा सकेंगे।
आसान रजिस्ट्रेशन
नया बिजनेस स्टार्ट करने के लिए सेल्स टैक्स डिपार्टमेंट में वैट रजिस्ट्रेशन करवाना अपने आप में कठिन काम है। कई राज्यों में कारोबार करने के लिए कई सारी प्रक्रियाओं का पालन करना होता है और प्रत्येक राज्य में अलग-अलग तरह की फीस भरनी पड़ती है। जीएसटी से इसमें एकसमानता आएगी तथा कंपनियों के लिए आसान और केंद्रीय रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया होगी। जीएसटी में, एंट्रप्रेन्योर्स को केवल एक सिंगल लाइसेंस लेने की जरूरत होगी और वो इसके साथ कई राज्यों में अपना बिजनेस स्थापित कर सकेंगे और एक समान टैक्स का भुगतान करेंगे। यह स्टार्टअप्स को अपना बिजनेस आसानी से लॉन्च करने और उसको विस्तार देने का रास्ता साफ करेगा।
तस्वीरों में समझिए क्या है जीएसटी
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टैक्स में भारी छूट
अधिकांश राज्यों में मौजूदा टैक्स कानून के मुताबिक 5 लाख रुपए से ज्यादा टर्नओवर वाले उद्योगों पर एकसमान वैट लागू होता है। टैक्स रेट घटाने के लिए, 10 लाख रुपए से 50 लाख रुपए टर्नओवर वाले उद्योग वैट कंपोजिट स्कीम को चुन सकते हैं। लेकिन यह स्कीम में कई सारे नियम और शर्त हैं, जो कि प्रत्येक उद्योग के लिए फिट नहीं बैठती हैं। हालांकि, जीएसटी के लागू होने पर, 10 लाख रुपए से कम टर्नओवर वाले उद्योगों को इससे बाहर रखा जाएगा। 10 लाख से 50 लाख रुपए सालाना टर्नओवर वाले उद्योगों पर निम्न दर से टैक्स लगेगा। इससे न केवल स्टार्टअप्स पर टैक्स का बोझ कम होगा बल्कि टैक्स से बचने वाला पैसा वह अपने बिजनेस में लगा सकेंगे।
लॉजिस्टिक क्षमता में सुधार
उत्पादों की बिना रुकावट आवाजाही और पूरे देश में सिंगल मार्केट के परिणामस्वरूप लॉजिस्टिक्स की क्षमता बहुत अधिक बढ़ जाएगी, जो कि अभी स्टार्टअप्स की बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है। राज्यों की सीमा पर जांच चौकियों की वजह से ट्रकों की आवाजाही में देरी होती है, जिसके परिणामस्वरूप डिलीवरी में देरी होती है और इससे अंतिम उपभोक्ता पर प्रोडक्ट कॉस्ट बढ़ जाती है।
बड़ी कंपनियों के पास बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक सुविधा होती है, वे आसानी से अपने उत्पादों के स्टॉक को दूसरे राज्यों में ट्रांसफर कर लेते हैं और इंटरस्टेट कमर्शियल ट्रांसपोर्ट पर टैक्स भी बचाने का प्रबंध कर लेती हैं। वहीं, इसके विपरीत स्टार्टअप के पास न तो लॉजिस्टिक होता है और न ही स्टॉक ट्रांसफर करने के लिए फंड। इसलिए वे इंटरस्टेट सेल्स के जरिये उत्पादों की खरीद करते हैं, जिस पर उन्हें सेंट्रल सेल्स टैक्स देना होता है। जीएसटी से यह सभी समस्याएं खत्म हो जाएंगी, उत्पादों का इंटरस्टेट मूवमेंट सस्ता और कम समय वाला हो जाएगा। सप्लाई चेन में बाधारहित मूवमेंट आएगा जिससे अधिक ऊंचे स्टॉक के प्रबंधन से जुड़ी लागत भी कम होगी। क्रिसिल के विश्लेषण के मुताबिक, जीएसटी से उन कंपनियों के लिए, जो नॉन-बल्क प्रोड्यूसिंग हैं, लॉजिस्टिक कॉस्ट 20 फीसदी तक कम हो सकती है।
लेकिन…स्टार्टअप्स के लिए एक बुरी खबर भी है
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में या कम टर्नओवर वाले स्टार्टअप पर जीएसटी से एक बड़ा बोझ भी पड़ने की संभावना है। मौजूदा एक्साइज कानून के मुताबिक, 1.5 करोड़ सालाना टर्नओवर वाले मैन्युफैक्चरिंग कारोबार को किसी भी तरह के टैक्स से छूट है। जीएसटी के बाद, यह टर्नओवर सीमा घटकर 25 लाख रुपए हो सकती है, जो कि कई स्टार्टअप्स के लिए बुरी खबर है।
ई-कॉमर्स स्टार्टअप्स पर सबसे ज्यादा मार पड़ेगी। जीएसटी में टीसीएस (टैक्स कलेक्शन एट सोर्स) गाइडलाइंस के मुताबिक ई-कॉमर्स कंपनियों को अपने पोर्टल से होने वाली विक्री पर टैक्स कलेक्ट करना होगा और मंथली व क्वार्टली रिटर्न फाइल करना होगा। इससे डॉक्यूमेंटेशन और एडमिनिस्ट्रेशन कॉस्ट बढ़ेगी जिसका बोझ अधिक कीमत वाले प्रोडक्ट्स के तौर पर उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। मंडी टैक्स जीएसटी में शामिल होगा या नहीं इस पर अभी कोई स्पष्टता नहीं है। इस तरह की विसंगतियों से फूड स्टार्टअप्स पर प्रभाव पड़ सकता है।