नई दिल्ली। वस्तु एवं सेवा कर (GST) के लागू होने के बाद कपड़ा उत्पाद विशेष रूप से सूती धागे और फैब्रिक वाले उत्पाद महंगे हो जाएंगे। सरकार ने GST में कपड़े को ऊंचे टैक्स स्लैब में रखा है। सरकार नई कर व्यवस्था को 1 जुलाई से लागू करने की तैयारी में है। उद्योग के एक वर्ग का मानना है कि सूती और सिंथेटिक फाइबर के लिए कर दरों में भिन्नता से व्याख्या से संबंधित मुद्दे पैदा होंगे। GST परिषद ने शनिवार को सूती कपड़े, धागे और फैब्रिक के लिए 5 प्रतिशत की दर तय की है। अभी तक इन पर शून्य शुल्क लगता था। हालांकि, कुछ राज्य सूती धागे और फैब्रिक पर दो से चार प्रतिशत का मूल्य वर्धित कर (VAT) लगाते हैं।
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परिधान निर्यात संवर्द्धन परिषद (AEPC) के चेयरमैन अशोक जी रजनी ने कहा कि,
कपड़ा उद्योग एक सरल कर व्यवस्था की उम्मीद कर रहा था जिसमें पूरी मूल्य श्रृंखला के लिए एकल दर होती। कई दरों की घोषणा से व्याख्या संबंधी समस्या पैदा होगी।
उन्होंने कहा कि सूती मूल्य श्रृंखला अभी तक मुख्य रूप से वैकल्पिक शुल्क मार्ग में थी। पांच प्रतिशत के कर से उत्पादन लागत में बढ़ोतरी होगी। GST में सभी प्राकृतिक रेशे जैसे कपास, सूती धागे, फैब्रिक्स और रेडीमेड गारमेंट्स जिनका मूल्य 1,000 रुपए से कम है के लिए 5 प्रतिशत की GST दर तय की गई है। 1,000 रुपए से अधिक मूल्य के गारमेंट्स पर 12 प्रतिशत की दर से कर लगेगा और सिंथेटिक या मानव निर्मित फाइबर तथा सिंथेटिक धागे पर 18 प्रतिशत की कर दर लागू होगी।
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सदर्न इंडिया मिल्स एसोसिएशन के चेयरमैन एम सेंथिलकुमार ने कहा कि,
अभी तक ज्यादातर कपड़ा उद्योग 2004 से वैकल्पिक व्यवस्था के तहत रखा गया था और सूती फैब्रिक्स पर वैट शून्य था। ऐसे में पांच प्रतिशत की GST दर से कपड़ा उद्योग के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा कर के दायरे में आ जाएगा।
कॉटन टेक्सटाइल्स एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन उज्ज्वल लोहाती ने सरकार से ड्राबैक दरें घोषित करने की मांग की है, जिसमें GST में बिना छूट वाले शुल्कों को भी ध्यान में रखा जाए। उन्होंने राज्यों की शुल्क योजनाओं में परिधानों पर मिल रही छूट को जारी रखने तथा इसे कपड़ा और धागे पर भी लागू किए जाने की अपील की है।
हालांकि कनफेडरेशन आफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री के चेयरमैन जे तुलसीदरन ने कहा कि इससे समूची कपड़ा मूल्य श्रृंखला को फायदा होगा और परिधानों की महंगाई कम होगी। इससे ग्राहकों को लाभ होगा।