नई दिल्ली। डीजल की ऊंची कीमतों की वजह से ढुलाई भाड़ा बढ़ने के बावजूद ट्रांसपोर्टरों का मुनाफा कम होगा। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मानसून के लौटने, उपभोग में सुधार और बुनियादी ढांचा गतिविधियां बढ़ने के बावजूद डीजल के ऊंचे दाम ट्रांसपोर्टरों के मुनाफे को प्रभावित करेंगे। क्रिसिल की सोमवार को जारी रिपोर्ट के मुताबिक, गत अक्टूबर से ढुलाई की दरें बढ़ने के बाद भी यह पिछले वत्त वर्ष की अंतिम तिमाही के स्तर से नीचे ही है। पिछले महीने करीब 80-85 प्रतिशत माल ढुलाई दरों में सुधार देखा गया, जबकि 15-20 फीसदी उत्पादों की दरों में कोई बढ़त नहीं देखी गई। दरअसल पिछले दो-तीन वर्षों में सड़क मार्ग से होने वाली माल ढुलाई कई बाधाओं की शिकार हुई है।
वित्त वर्ष 2018-19 में मालवहन के नए मानक लागू होने से भारी वाहनों की ढुलाई क्षमता में खासी कमी आई और वर्ष 2019-20 में भारत चरण-छह (बीएस-6) मानक लागू होने से नए ट्रकों के दाम 10-15 प्रतिशत बढ़ गए। उसके बाद कोविड-19 महामारी आने और आर्थिक गतिविधियों के संकुचित होने से भी ढुलाई उद्योग पर मार पड़ी। अप्रैल-जून, 2020 की तिमाही में लगे सख्त लॉकडाउन से अधिकांश शहरों में ढुलाई कम हो गई थी। हालांकि, उसके बाद की तीन तिमाहियों में अर्थव्यवस्था के धीरे-धीरे खुलने से ढुलाई कारोबार में सुधार दर्ज हुआ। वित्त वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही तक सीमेंट, इस्पात एवं वाहनों की ढुलाई दरें बढ़ चुकी थीं।
सीमेंट जैसे औद्योगिक उत्पादों के अलावा उपभोग से जुड़े सामान और कृषि उत्पादों की ढुलाई दरें तुलनात्मक रूप से स्थिर रही हैं। क्रिसिल की 11 तरह के जिंसों की स्थिति के आधार पर तैयार यह रिपोर्ट कहती है कि कपड़ा क्षेत्र खासकर सिलेसिलाए परिधान उद्योग की मांग कोविड-पूर्व के स्तर पर पहुंचने में अभी कुछ महीने और लग सकते हैं। रोजमर्रा के उत्पादों से जुड़े एफएमसीजी क्षेत्र की ढुलाई मांग में सुधार कपड़ा एवं टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादों की तुलना में तेज रहा है। क्रिसिल अक्टूबर, 2020 से ही प्रमुख मार्गों पर ट्रांसपोर्टरों के नकद प्रवाह और ढुलाई दरों पर नजर रखती रही है और अब इसके आंकड़े मासिक आधार पर जारी करेगी। उसका कहना है कि जून से अक्टूबर के दौरान डीजल की कीमतों में हुई वृद्धि की तुलना में ढुलाई दरें कहीं ज्यादा बढ़ी हैं।