नई दिल्ली। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स ने शुक्रवार को कहा कि सरकार पर कर्ज के भारी दबाव के कारण भारत की रेटिंग में सुधार रुक गया है। फिच का यह बयान ऐसे समय आया है जब एक ही दिन पहले पेश बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राजकोषीय घाटे का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.2 प्रतिशत से बढ़ाकर 3.5 प्रतिशत किया है। संसद में गुरुवार को पेश बजट में आर्थिक जरूरतों तथा सामाजिक बेहतरी के लिए कई नीतिगत कदमों की घोषणा की गयी। इनमें से कृषि आय में वृद्धि तथा नये मेडिकल कॉलेज बनाने समेत महत्वाकांक्षी चिकित्सा बीमा योजना आदि शामिल हैं।
फिच रेटिंग के निदेशक एवं प्राथमिक स्वायत्त विश्लेषक (भारत) थॉमस रूक्माकर ने कहा कि,
यदि अच्छे से क्रियान्वयन किया गया तो इन क्षेत्रों में किया गया खर्च मतदाताओं के बड़े वर्ग तक पहुंचेगा जो कि आगामी चुनाव के लिहाज से महत्वहीन नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि सरकार की कमजोर वित्तीय स्थिति ने भारत की सॉवरेन रेटिंग में सुधार में रुकावट डाला है। सरकार के ऊपर जीडीपी के करीब 68 प्रतिशत के बराबर ऋण का बोझ है और यदि राज्यों को शामिल किया जाए तो राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.5 प्रतिशत है।
रूक्माकर ने कहा कि सरकार ने राजकोषीय घाटे को जीडीपी के तीन प्रतिशत तक सीमित रखने के लक्ष्य को 2020-21 तक के लिए टाल दिया है जो इसके कार्यकाल से भी आगे है। फिच ने पिछले साल मई में कमजोर वित्तीय स्थिति का हवाला देकर भारत की स्वायत्त रेटिंग को बीबीबी(-) पर स्थिर रखा था। यह स्थिर परिदृश्य के साथ निवेश योग्य निम्नतम श्रेणी है।