नई दिल्ली। एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली भारतीय मुद्रा अपनी गिरावट को रोकने में असफल है। 4 सितंबर को भारतीय रुपया 71.75 रुपए प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ। इस स्तर पर रुपया पहली बार पहुंचा है। जनवरी से लेकर अब तक भारतीय रुपया 10 प्रतिशत कमजोर हो चुका है।
खबर यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 8.2 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, जो पिछली नौ तिमाहियों में सबसे ज्यादा है, जिसने थोड़ी राहत प्रदान की है।
रुपए के लगातार गिरने के ये हैं कुछ कारण
क्रूड प्राइस:
पिछले कुछ हफ्तों से अंतरराष्ट्रीय क्रूड ऑयल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। पिछले 15 दिनों में क्रूड ऑयल के दाम 7 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ चुके हैं। 3 सितंबर को क्रूड ऑयल फ्यूचर 75 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेड कर रहा था। यहां यह ध्यान देने की बात है कि भारत अपनी तेल जरूरत का लगभग 80 प्रतिशत आयात करता है। क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतें डॉलर की मांग को बढ़ा रही हैं, जिसकी वजह से रुपया कमजोर हो रहा है।
चालू खाता घाटा:
नोमूरा रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ती क्रूड ऑयल प्राइस और कमजोर रुपए का मतलब है कि भारत का चालू खाता घाटा चालू वित्त वर्ष के दौरान जीडीपी का 2.8 प्रतिशत हो सकता है, जो पिछले साल से 1.9 प्रतिशत अधिक है। इस साल यह घाटा पहले ही पांच साल के उच्चतम स्तर 18 अरब डॉलर पर पहुंच चुका है। यह रुपए पर और दबाव बना रहा है।
अंतरराष्ट्रीय स्थिति:
तुर्की की स्थिति ने उभरते बाजारों की मुद्राओं पर विपरीत असर डाला है। तुर्की की मुद्रा लीरा इस साल 40 प्रतिशत तक गिर चुकी है। पिछले महीने, अमेरिका ने तुर्की से आयात होने वाले स्टील, एल्यूमिनियम और अन्य कमोडिटीज पर उच्च आयात शुल्क लगाया था, जिससे तुर्की की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से हिल गई है।
अमेरिका-तुर्की विवाद के अलावा, सबसे बड़ी चुनौती अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध है। दोनों देश एक-दूसरे के उत्पादों पर शुल्कों में बढ़ोतरी कर चुके हैं। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह नए शीत युद्ध की शुरुआत है।
निष्क्रिय आरबीआई:
आमतौर पर जब रुपया कमजोर होता है, तो केंद्रीय बैंक इसे बचाने के लिए अपने भंडार से डॉलर की बिक्री करता है। अभी तक, हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने घरेलू मुद्रा के बचाव में कोई भी अक्रामक कदम नहीं उठाया है।
भारत के सबसे बड़े प्राइवेट बैंक एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरुआ का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप न के बराबर है। आरबीआई इस बारे में कुछ भी नहीं कह रहा है, जबकि सरकार और अर्द्ध-सरकारी एजेंसियों के अधिकारियों के बयान इस धारणा को प्रकट करते हैं कि वे प्रतिस्पर्धा के हित में रुपए के मूल्य में इस गिरावट का समर्थन करते हैं।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था:
अमेरिका की जीडीपी में इस साल बेहतर सुधार आया है जिसकी वजह से डॉलर ने बेहतर प्रदर्शन किया है। अमेरिका की अर्थव्यवस्था इस साल की दूसरी तिमाही में 4.1 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ी है, जो 2014 के बाद सबसे तेज वृद्धि दर है। यहां अधिक लोगों को रोजगार मिला है, जबकि औसत वेजन भी बढ़ा है। सभी संकेतों से, इनमें से अधिकतर वैश्विक संकेतों में निकट भविष्य में परिवर्तन आने की संभावना कम है। इसलिए भारत में बिजनेस और व्यक्तियों को खुद को संभालने की जरूरत है।