नई दिल्ली: देश की अर्थव्यवस्था में स्वास्थ्य बड़े क्षेत्रों में से एक बन गया है और 2022 तक इसके 372 अरब डॉलर तक पहुंच जाने का अनुमान है। नीति आयोग की मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में यह कहा गया है। रिपोर्ट में देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में अस्पताल, औषधि और चिकित्सा उपकरणों से लेकर निवेश के विभिन्न अवसरों का जिक्र किया गया है। ‘भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश अवसर’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में 2017 से 2022 के दौरान 27 लाख नौकरियां यानी हर साल पांच लाख नौकरियां सृजित करने की क्षमता है। इसमें कहा गया है, ‘‘भारत का स्वास्थ्य उद्योग 2016 से संचयी आधार पर करीब 22 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रहा है। इस आधार पर इसके 2022 तक 372 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच जाने का अनुमान है।’’
रिपोर्ट में देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश के विभिन्न अवसरों को रेखांकित किया गया है। इसमें अस्पताल दवाएं, चिकित्सा उपकरण, घरों पर स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े समाधान और नई प्रौद्योगिकी से जुड़े क्षेत्र शामिल हैं। इसमें कहा गया है, ‘‘आय और रोजगार के लिहाज से देश की अर्थव्यवस्था में स्वास्थ्य बड़े क्षेत्रों में से एक बन गया है। इस क्षेत्र में 2017 से 2022 के दौरान 27 लाख रोजगार सृजित करने की क्षमता है। यानी हर साल औसतन 5 लाख रोजगार।’’ रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य क्षेत्र में एफडीआई प्रवाह 2011 में 9.4 करोड़ डॉलर था जो 2016 में उछलकर 127.5 करोड़ डॉलर पहुंच गया। यानी इसमें 13.5 गुना का उछाल आया।
इसमें कहा गया है कि निजी कंपनियों के लिये अस्पतालों के मामले में छोटे एवं मझोले शहरों (टियर दो और टियर तीन) में विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। उनके लिये महानगरों से इतर छोटे शहर निवेश के आकर्षक अवसर हैं। नीति आयोग के सदस्य वी के पॉल, मुख्य कार्यपालक अधिकारी अमिताभ कांत और अतिरिक्त सचिव राकेश सरवाल ने रिपोर्ट जारी किये।
कांत ने रिपोर्ट की भूमिका में लिखा है, ‘‘कोविड-19 महामारी ने न केवल चुनौतियां प्रस्तुत की बल्कि देश को आगे बढ़ने के लिये कई अवसर भी दिये हैं। ये सभी कारक मिलकर भारत के स्वास्थ्य उद्योग को निवेश के लिए परिपक्व और आकर्षक बनाते हैं।’’ रिपोर्ट के अनुसार घरों पर स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े समाधान का बाजार अभी फिलहाल तुलनात्मक रूप से शुरूआती चरण में हैं। लेकिन भविष्य में इसमें वृद्धि की काफी संभावना है। इसका कारण देश में बुजुर्गो की आबादी में वृद्धि, पुरानी बीमारियों का प्रभाव बढ़ना, व्यक्तिगत देखभाल के लिये मांग में बढ़ोतरी के साथ शहरी क्षेत्रों में एकल परिवार ढांचे का उभरना है।