नई दिल्ली। महामारी की वजह से राज्यों को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति के मामले में जीएसटी काउंसिल की बैठक में आज सहमति नहीं बन सकी। बैठक के बाद वित्त मंत्री ने इसकी जानकारी दी। केंद्र के द्वारा राज्यों को दिए गए कर्ज उठाने के विकल्प पर कुछ राज्य सहमत नहीं है। बैठक में वित्त मंत्री ने साफ कहा कि केंद्र सरकार क्षतिपूर्ति की भरपाई के लिए कर्ज नहीं ले सकता, इसके लिए राज्यों को ही कर्ज उठाना होगा। उनके मुताबिक अगर केंद्र जीएसटी में कमी को पूरा करने के लिए कर्ज उठाता है तो इससे कर्ज लागत काफी बढ़ जाएगी। उनके मुताबिक अर्थव्यवस्था जिस मोड़ पर है वहां कर्ज लागत बढ़ाने का जोखिम नहीं लिया जा सकता। वित्त मंत्री ने साफ किया कि सेस के जरिए क्षतिपूर्ति को पूरा किया जाना संभव नहीं है ऐसे में आय में आई कमी को कर्ज के जरिए ही पूरा किया जा सकता है। उन्होने जानकारी दी कि आज की बैठक में कर्ज से जुड़े मामलों और सेस पर चर्चा हुई। वहीं वित्त मंत्री ने कहा कि जीएसटी काउंसिल सेस पर, सेस के कलेक्शन पर, सेस के कलेक्शन के समय को बढ़ाने पर और ऐसे ही अन्य उपायों पर आगे फैसला ले सकती है। वहीं वित्त मंत्री ने ये भी कहा कि इस मुद्दे पर कोई विवाद नहीं है, हालांकि सिर्फ विचारों में कुछ अंतर है।
चालू वित्त वर्ष में जीएसटी राजस्व में 2.35 लाख करोड़ रुपये की कमी रहने का अनुमान है। केंद्र सरकार ने अगस्त में राज्यों को दो विकल्प दिये है। पहले विकल्प के तहत रिजर्व बैंक के द्वारा 97 हजार करोड़ रुपये के कर्ज के लिये विशेष सुविधा दिये जाने , तथा दूसरे विकल्प के तहत पूरे 2.35 लाख करोड़ रुपये बाजार से जुटाने का प्रस्ताव है। वित्त मंत्री के मुताबिक अधिकांश राज्य पहले विकल्प के लिए तैयार है। केंद्र सरकार का कहना है कि जीएसटी क्षतिपूर्ति राजस्व में अनुमानित कमी में महज 97 हजार करोड़ रुपये के लिये जीएसटी क्रियान्वयन जिम्मेदार है, जबकि शेष कमी का कारण कोरोना वायरस महामारी है। कुछ राज्यों की मांग के बाद पहले विकल्प के तहत उधार की विशेष कर्ज व्यवस्था को 97 हजार करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1.10 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है।
इससे पहले सोमवार ही को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यों को 50 साल के लिए 12 हजार करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त कर्ज देने का ऐलान किया है। यह 12,000 करोड़ रुपए का ब्याज मुक्त ऋण कैपिटल एक्सपेंडिचर के लिए दिया जा रहा है। कुल राशि में से 1600 करोड़ रुपये उत्तर-पूर्व को मिलेंगे, जबकि 900 करोड़ रुपये उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश को दिए जाएंगे। इसके अलावा 7500 करोड़ रुपये दूसरे राज्यों को दिए जाएंगे। इस रकम का बंटवारा राज्यों के बीच वित्त आयोग में राज्यों की हिस्सेदारी के आधार पर तय किया जाएगा।इसके साथ ही 50 साल के लिए ब्याज मुक्त ऋण के तौर पर 2000 करोड़ रुपये उन राज्यों को दिए जाएंगे, जो आत्मनिर्भर भारत पैकेज के चार सुधारों में से कम से कम तीन शर्तों को पूरा कर रहे हों। प्रदान किए गए ऋणों का उपयोग नई या चल रही पूंजी परियोजनाओं के लिए किया जाएगा। उधार ली गई राशि को 31 मार्च, 2021 तक खर्च करना होगा।केंद्र की ओर से दिए जा रहे किस्तों में इस ऋण का पुनर्भुगतान 50 साल के बाद करना होगा। जीएसटी काउंसिल की बैठक के बाद वित्त मंत्री ने कहा कि सभी राज्यों ने ब्याज मुक्त कर्ज के लिए केंद्र की सराहना की है।