नई दिल्ली। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों में विसंगति की बात स्वीकार करते हुए मुख्य सांख्यिकीविद टीसीए अनंत ने कहा कि सरकार ऐसी विसंगतियों को कम से कम करने का प्रयास कर रही है। वित्त वर्ष 2015-16 में जीडीपी के आंकड़ों में फर्क बढ़ कर 2.14 लाख करोड़ रुपए तक दिखा है, जो इसके 1.9 फीसदी के बराबर है।
अनंत ने कहा कि राष्ट्रीय खाते में कुछ विसंगति तो हमेशा रहेंगी क्योंकि राज्य सरकारों सहित विभिन्न एजेंसियों द्वारा सूचना भेजने में विलंब होता है। हालांकि, आंकड़ों को सही तरह से देने के प्रयास किए जा रहे हैं। उनसे पूछा गया था कि 2015-16 के जीडीपी आंकड़ों में इतने अधिक फर्क की क्या वजह है। अनंत ने कहा कि सरकार राष्ट्रीय या जीडीपी की गणना में विसंगतियों को कम से कम करने का प्रयास कर रही है। इसके लिए वह ई-गवर्नेंस कार्यक्रम या कॉरपोरेट खातों के तहत उपलब्ध आंकड़ों पर अधिक निर्भर कर रही है।
सांख्यिकीय शब्दावली में जीडीपी आंकड़ों में विसंगति का तात्पर्य उपभोग और उत्पादन आधार पर राष्ट्रीय आय की गणनाओं के नतीजों में फर्क से है। हालांकि, सरकार के मुख्य सांख्यिकी अधिकारी अनंत ने हाल में जारी 2015-16 के आंकड़ों में विसंगति को लेकर कोई आंकड़ा नहीं दिया, लेकिन हाल में जारी जीडीपी आंकड़ों से पता चलता है कि 2015-16 में यह अंतर 2.15 लाख करोड़ रुपए का है, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 35,284 करोड़ रुपए था।
यह भी पढ़ें- मानसून ठीक रहा तो आर्थिक वृद्धि पहुंचेगी आठ फीसदी तक, भारत कर रहा है बेहतर प्रदर्शन
वर्ष 2015-16 के राष्ट्रीय आय के आंकड़ों के अनुसार यह अंतर वर्तमान तथा स्थिर मूल्य (2011-12 के मूल्य) पर क्रमश: 0.1 फीसदी तथा 1.9 फीसदी है। 2014-15 में यह 0.4 फीसदी और ऋणात्मक 0.3 फीसदी था। इससे पहले इसी सप्ताह जारी आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2015-16 में स्थिर मूल्य पर जीडीपी 113.50 लाख करोड़ रुपए रहा है, जो जीडीपी में 7.6 फीसदी की वृद्धि दर्शाता है। यह दुनिया में उभरती अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक वृद्धि है।
मौजूदा मूल्य पर इसके 135.76 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है, जो 8.7 फीसदी की वृद्धि दर्शाती है। अनंत ने कहा कि कुछ शुरुआती बयान कि यह सबसे अधिक अंतर है, संभवत: सही नहीं है। जब हमें अधिक सूचनाएं मिलेंगी तो यह अंतर कम होता जाएगा। अनंत ने कहा कि यह अंतर इसलिए आता है कि उत्पादन के आंकड़ों के साथ सरकार व्यय का अनुमान भी लगाती है। आवंटन से व्यय पक्ष का पूरी तरह से सही अनुमान नहीं लगता है। ऐसे में दोनों अनुमानों का अंतर खामी बन जाता है।
यह भी पढ़ें- ग्लोबल स्तर पर बढ़ी महंगाई तो भारत को होगा 49 अरब डॉलर का नुकसान, संयुक्त राष्ट्र ने जारी की नई रिपोर्ट