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बड़े बैंक कर्जदारों को बचाना चाहती है सरकार, उनके खिलाफ नहीं उठाना चाहती सख्त कदम : AIBEA

AIBEA के महासचिव सीएच वेंकटाचलम ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि सरकार बड़े बैंक कर्जदारों को बचाना चाहती है।

Manish Mishra
Published on: November 27, 2017 15:35 IST
बड़े बैंक कर्जदारों को बचाना चाहती है सरकार, उनके खिलाफ नहीं उठाना चाहती सख्त कदम : AIBEA- India TV Paisa
बड़े बैंक कर्जदारों को बचाना चाहती है सरकार, उनके खिलाफ नहीं उठाना चाहती सख्त कदम : AIBEA

इंदौर बैंकों के बड़े कर्जदारों पर कार्रवाई के संबंध में सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (AIBEA) ने सोमवार को मांग की कि जान-बूझकर बैंक कर्ज नहीं चुकाने वाले लोगों के विरुद्ध फौजदारी कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए। AIBEA के महासचिव सीएच वेंकटाचलम ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि सरकार बड़े बैंक कर्जदारों को बचाना चाहती है। वह उनके खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाना चाहती।

वेंकटाचलम ने कहा कि,

सरकार को सभी बैंक कर्जदारों के नामों को सार्वजनिक करना चाहिए। जान-बूझकर कर्ज न चुकाने वाले लोगों के खिलाफ फौजदारी कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए।

उन्होंने दावा किया कि विजय माल्या जैसे कॉरपोरेट दिग्गजों के कर्ज नहीं चुकाने के कारण देश में बैंकों की कुल गैर- निष्पादित आस्तियां (NPA) बढ़कर 15 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंच गई हैं। AIBEA महासचिव ने सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में अगले दो साल के भीतर 2.11 लाख करोड़ रुपए की पूंजी डालने की योजना पर भी सवाल उठाया।

उन्होंने कहा कि,

इन बैंकों को सरकार से मूलधन के रूप में पांच लाख करोड़ रुपए की जरूरत है। मूलधन की कमी के चलते इन बैंकों को कर्ज बांटने और अपना कारोबार बढ़ाने में खासी मुश्किल हो रही है।

वेंकटाचलम ने देश के सरकारी बैंकों के विलय और निजीकरण के विचार को “बेहद घातक” बताते हुए कहा कि इन बैंकों की सुरक्षा सरकार की जिम्मेदारी है और उसे इनका विस्तार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बैंकिंग सुधारों के नाम पर सरकार के उठाये जा रहे कथित गलत कदमों के बारे में आम लोगों को जागरूक करने के लिये AIBEA अगले महीने से देशव्यापी अभियान चलायेगा।

वेंकटाचलम ने आईडीबीआई बैंक में वेतन वृद्धि की मांग के समर्थन में 27 दिसंबर को बुलायी गयी राष्ट्रव्यापी हड़ताल को AIBEA के समर्थन की घोषणा भी की। आईडीबीआई बैंककर्मियों की वेतन वृद्धि एक नवंबर 2012 से लंबित है।

उन्होंने आरोप लगाया कि वस्‍तु एवं सेवा कर (GST) का बैंकिंग उद्योग पर विपरीत असर पड़ रहा है और खासकर छोटे कारोबारी नई कर प्रणाली के दायरे में आने के “डर” से बैंकिंग लेन-देन से बच रहे हैं।

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