नई दिल्ली। सरकार को उम्मीद है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए आगामी मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दरों में कटौती करेगा। जून तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर तीन साल के न्यूनतम स्तर 5.7 प्रतिशत पर आ गई। कई विशेषज्ञों और उद्योग मंडलों ने भी मुद्रास्फीति में कमी और आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने के मद्देनजर प्रमुख नीतिगत दरों में कटौती पर जोर दिया है।
हालांकि, बैंक के शीर्ष अधिकारियों का विचार है कि RBI मुद्रास्फीति में वृद्धि को देखते हुए यथास्थिति बनाए रख सकता है। भारतीय स्टेट बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, RBI 4 अक्टूबर को मौद्रिक नीति समीक्षा में यथास्थिति बनाए रख सकता है। वह निम्न वृद्धि, मुद्रास्फीति और वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच फंस गया है।
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मोर्गन स्टेनली ने एक शोध रिपोर्ट में कहा है कि हमारा अनुमान है कि RBI आगामी मौद्रिक नीति समीक्षा में यथास्थिति बरकरार रखेगा। इसका कारण बढ़ती मुद्रास्फीति और इसमें और बढ़ोतरी का अनुमान है। इसका आशय है कि नीतिगत दर में कटौती की गुंजाइश सीमित है।
पिछले सप्ताह वित्त मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि,
RBI अगली मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर में कटौती कर सकता है क्योंकि खुदरा मुद्रास्फीति नीचे बनी हुई है।
उद्योग जगत पहले ही आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने को लेकर नीतिगत दर में कटौती की वकालत कर चुका है। उद्योग मंडल एसोचैम ने RBI और मौद्रिक नीति समिति को पत्र लिखकर रेपो दर में कम-से-कम 0.25 प्रतिशत की कटौती करने को कहा है। उसका कहना है कि अर्थव्यवस्था चुनौतियों का सामना कर रहा है। ऐसे में वृद्धि को पटरी पर लाने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।
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उल्लेखनीय है कि RBI ने अगस्त महीने में पिछली मौद्रिक नीति समीक्षा में मुद्रास्फीति जोखिम में कमी का हवाला देते हुए रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती कर इसे 6.0 प्रतिशत कर दिया था। हालांकि, अगस्त महीने में खुदरा मुद्रास्फीति सब्जी और फलों के महंगा होने के कारण पांच महीने के उच्च स्तर 3.36 प्रतिशत पर पहुंच गयी। जुलाई में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर 2.36 प्रतिशत थी। RBI की मौद्रिक नीति समिति 4 अक्टूबर को द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा पेश करने वाली है।